Sunday, May 6, 2012

पता तो चले

साईकिल ठीक करने के बहाने,
वो रोज देखता था मुझको.
यही ख़राब होती थी उसकी साईकिल.
शायद चार रोज के पैसे जोड़,
घंटी लगवाई थी नयी,
जो मुझमें बजती थी.
 
भरम होता था मुझे उसका,
उसकी साईकिल ख़राब होने का,
घंटी का.
कई आवाजें खून को दिल से बेहतर चलाती हैं.
कुछ ना कुछ सोचती ही रहती थी.
शायद एक साईकिल मेरे पास भी होती,
पता लगाती वो करता क्या हैं.
 
उसकी पतलून पर लगा रंग,
और दो कमीजों के अलावा,
क्या हैं.
कोमी हैं,या पेंटर,
या पुताई करता हैं या अख़बार बाटता हैं.
क्या करूँ,कौन हैं,
समझ में नहीं आता.
 
रोज ही तो आता हैं,
साईकिल ख़राब करने.
एक छोटा सा कागज़ भी नहीं फैका,
बस तकता रहता हैं.
कुछ काम तो हो,बेशक इश्क हो,
पता तो चले.
 

जेब

अब ये शहर भी छोड़ दूंगा मैं,
कभी-कभी सांस नहीं आती.
खुद में खोना भूल गया हूँ,
तनख्वाह हैं.
अपनी जेब कैची से काट दूंगा.
किसी सिली दिवार से होंठ लगा लूँगा,
के सीलन जो कभी थी मुझमें.

मैं पत्थर पर बैठकर आसमान ताकना चाहता हूँ.
नदी की आवाज हो कानो में.
में बस नहीं पाउँगा जंगल में,
ये शहर मुझे छोड़ना ही पड़ेगा.
जेब काटनी होगी.

भगोड़ा बन कर ही जानवर जी सकता हैं,
या मरकर.
मरना और सांस लेना,
दोनों काम एक साथ नहीं कर पाउँगा.
नदी से बातें करना चाहुंगा,
अगर जियूँगा तो जियूँगा
और अगर मर गया तो सिर्फ ,
मर जाना चाहुंगा.
जेब काटना चाहुंगा.

काम से काम तक का सफ़र,
कमरें के अन्दर, कमरें के बाहर.
मैं सब मैदान में करना चाहुंगा.
सब लिख कर बहाऊंगा,
सागर मैं खुद को धुंद्नें जाऊंगा.

खैर अभी कही हूँ दिल्ली से बाहर,
ट्रेन पकडनी हैं पांच बजे की,
चलना चाहुंगा.

Thursday, May 3, 2012

.

शिकन हैं हाँ,
और भरम किसी लोक का.
मुझे देखते ही वो घुटनों के बल चलने लगती.
हर कहानी का किरदार मैं ही हूँ,
अभी घुटनों पर हूँ.

स्याह बावली देखी ना होगी,
अभी तक चाँद सूरज नहीं उतरें थे.
बचपन को समझा था,
प्रेत से बचने का टोटका.
इन मंदिरों में अब तलक,
उसकी सांसें,घंटियों पर हाथ की छाया,
और तालाब में देह उसकी,
पकड़ सकते हो.
वो बस अब हर जगह हैं,
आकर और समझ से ऊपर.

किसी ने कई बार देखा उसे,
तालाब में नहाते "नग्न"
हाँ नग्न ,
चाँद सूरज पहने थे उसने.
सफ़ेद साड़ी पहनने से क्या घटता.
पूरी नग्नता से,
धीमी मुग्ध नग्नता ज्यादा कामुक होती हैं.
साड़ी पड़ी थी वहां,जहाँ वो नहीं थी.
चलती थी घुटनों के बल.
नाचते मोर के पंख उधेड़ के,
उसके कूल्हों में जड़ दे कोई.
पाँव भी खूब हैं, पानी जैसे.
नाचने से कहा रुक पाती वो.

औरत ही हैं ये,
अभी अभी मेरे सपनो से कागज़ पर उतरी हैं.
अजीब बात हैं मैं लिखना चाहता हूँ
आज से पहले तो मैंने कभी अपने शब्द नहीं काटें.
कभी नहीं सोचा की ये अच्छा नहीं लिखा,
मैं लिखने के लिए लिखता हूँ आजकल.
 
शांत हैं चित,
ना कुछ कहने को,ना सुनने को,
ना लताडने को,
गालियाँ भी नहीं देता,
शराब भी नहीं पीता,
औरतों से दिल नहीं बहलता,
पागल भी नहीं हूँ अब.
सब बेवजह करता हूँ.
मेरा साया सो रहा हैं,
मैं नहीं.
 
कितनी समझ हैं सबमें,
हर एक की समझ,हर एक से ज्यादा,
काश कोई मेरी समझ खरीद ले,
जो मुझे मुफ्त खरीदेगा,
वो ही असली खरीदार हैं.
मैं उससे देखना चाहुंगा,
उसकी आँखें फोड़ना चाहुंगा.
 
जानवर बनने का अपना मजा हैं.
अंधे सब देखना चाहते हैं,
बहरें सब सुनना.
मैं सोना चाहता हूँ.
मैं हूँ,
खुद का स्वपन.

Tuesday, May 1, 2012

इजहार किससे करूँ,कोई नहीं,
तु हैं,तुझे कुछ पता नहीं.
 
तुझसे कुछ भी कहूँ,लगता हैं तुझे,
शायरी हैं.
 
सुबह-शाम,दुनिया के बाद,
ले फिर रात आई हैं.
 
खोल दे खुद को ,तुझे देख नहीं सकता,
तेरी उँगलियों मैं जमें खून ,की खुशबू आई हैं.
 
इतने सवाल,कभी खुद से भी नहीं होते,
तुने औरत सी जूस्तजू,बच्चें सी नमी पायी हैं.
 
कोई भी हैं,कही भी हैं,चाहें तु हों,
मैंने खुदा से सिर्फ,खुदखुशी पायी हैं.
 
हज़ार हर्फों का मतलब एक,
हर्फों ने बस दुनिया बसाई हैं.
 
कभी आके,सामने बैठना तुम,
मैं भी देखू,किसने ये ग़ज़ल लिखवाई हैं.
 
ये ज़िन्दगी हैं मौत का मुकदर"शेर",
ये ज़िन्दगी सबने पायी हैं.
 
किसी के बस का काम नहीं हैं,
मेरी रूह ,मैंने खुद उलझाई हैं.
मैं खुद दिखता हूँ आईने में,मुझको,
मैं टुटा हुआ हूँ,आइना झूठा हैं.
 
ख़ामोशी हैं, मैं घर की सोचता हूँ,
काश दुनिया, मुझे मरा समझ ले.
 
इबादत किसकी करूँ,कोई नहीं,
क्यों ना माँ मेरी,मुझे कोख में दबोच ले.
 
वेह्सी बन गया हूँ मैं,एक अव्वल वेह्सी,
मेरे पास कोई आये,मुझे समझ ले.
 
इस्तेहारों की तरह लोग तकते हैं मुझको,
कभी तो जरुरत का सामान,डब्बे मैं छोड़ दे.
 
औरतों का जिस्म अब खाने को भी नहीं ,
"शेर" चलो,दारू भी छोड़ दे.
कुछ ना कुछ नुक्स ही दिखता हैं मुझे खुद में,
एक इंसान ना बन पाया मैं.
 
बरहाल याद हैं इतना,के दो जिस्म थे,
एक को भी ना छोड़ पाया मैं.
 
हर मोहब्बत बिस्तर पर ख़तम हुई,
और बिस्तर से ना उठ पाया मैं.
 
मज्मो का कारवां,ख़ुशी की महफ़िलें, में कभी कहा पूरी पी,
मैकदो में बस, मैं को ही पी पाया मैं.
 
किस बरस का गम,किस बरस बरसा,
सोता रहा,आँखें ना खोल पाया मैं.
 
इन फसलों के बावजूद,तेरी बधाईयाँ,
के कुछ ना बन पाया मैं.

Wednesday, April 25, 2012

जनम शायर कर शेर,फासला इतना सा हैं,
वह हैं वाईज,यहाँ दूसरा सा हैं.


कोई लुट गया,खरीद-फरोक्त ये,
कोई दुंद्ता,मसला सा हैं.


किस का दर्द शायर को पता,
कही जलता शायर सा हैं.


किसी मुक्क़दस मोड़ पे ,जी लेंगे ज़िन्दगी,
अभी रास्ता नया सा हैं.


किसी ने पुछा जो मेरा मक़ाम,
वो शक्स ,मेरा सा हैं.


सिगरटों के बाद ज़िन्दगी बुझ गयी,
ये आशकी ,धुआं सा हैं.


मैं पुकारू तुम्हें,तुम्हारी तरह,
कोई आदमी दिखा सा हैं.


मजबुरीयाँ ,इन फसलो की हया तो,
मुसीबतों में भी,जनाजा जला तो हैं.


मैंने पुछा की कहा की हो तुम,
तुमने,हमें सुना तो हैं.


चलो अब मुस्कुराकर कर सही,
मुस्कुराने का जज्बा तो हैं.


रो लो और जी दो ये लम्हा,
ये लम्हा,तुम्हें मिला जो हैं.

जिसने पीने के बाद सोना सिख लिया,
अब सिखने को बचा क्या हैं!

Psychoanalysis

1.

Man with too many accessories,
has to live on reality.
Rusted teeth and concious glares,
need to be wrapped in beads aswell.
Long hair and iron bolted belt,
yell him to seek an adventure.
Women,could fall for him,
if he could see him.

His pretty modern phone,
expensive cover is the prized possesion.
Yes,he is alone And his finger splits truth,
inside his ear,lust revoked.

Indeed.He is a man with brown shoes,
sitting in front of a hot ugly woman.
He knows what she can offer him,
this man needs nothing, but the beads.


2.

Habit of reading,
nothing to do with knowing but telling.
Psychoanalysis is firm from face,
teeth should not be even,
perfection is indeed not acceptable.

A man to quarrel is a card game,
if you can play without putting the cards.

Happiness.
Yes,he is happy.
कोई तो हैं,जो बोलता हैं,
सब खामोश हैं,हैं शोर कितना!

इन लिफाफों में हैं सफ़र कितना,
ख़त में इसका ज़िक्र भी नहीं.

तुम्हें कोई भी छु सकता हैं,क्या सोच,
के यु जग की रखैल नहीं हो तुम.

बदल देते हो किसी का भी घर,
क्या जीना भी शिकवा नहीं हैं!

हर साज़ और हर परिंदे का सपना,
सब मर चुके हैं,तुम्हें कुछ भी पता नहीं हैं.

बंजारे रोते हैं तो ताजमहल हैं,
बिक न जाते,जो बस जाते.

किस की भी हिमायत, दर्द हैं,
क्यों न हम हँसना छोड़ दे.

वो मर गया जो जिंदा था,
जो जिंदा हैं वो मर गए.

खाली दीवारों पर लिखना मुश्किल कितना,
काश यु कोरा जी जाये कोई.

इश्क की बात कौन करे.
ये गर्म हैं जमीं,तेरे आगोश से परे,
यु न समझ, के मदहोश हु मैं!
किन ताबूतों को ताला लगा,वो रो दी,
इंसान की तलाश सिर्फ जहन में हैं.

Monday, April 23, 2012

१.
दो प्याली चाय पीना कहा बेहतर,
ज़िन्दगी मैं शक्कर घोलोगे ,मर जाओगे.

२.
नाम देती रहती हो,
जैसे तुम मेरा नाम ही नहीं जानती.

३.
मैं अगर पालतू होता तो बहुत आगे जाता.
अफ़सोस.



४.
कुछ तो आँखें या नशा,
किस रात की बात किस रात.

 

५.
ख्याल ढूँढना,वाहियात पेशा हैं मेरा.
कभी उड़ना,कभी नहीं,
कभी.


६.
तुमसे तो इश्क भी न हुआ,
जिसका तुम दम भरती थी.
दूर से देख मचलती रही,
तितलियों की तरह जलती रही.

जुगनू दिन में उड़ते होंगे,
वो रोशन हो तो शाम हुई.

मैं पर भरोसा तो सबको था,
तु आई,समझ फुर्र हुई.

हाथ में खुदा थाम के भेज दिया,
ये तो बस ज़िन्दगी जीनी हुई.

कुछ लोगो ने शरारतों से नाम लिया तेरा,
रात अब सजा हुई.

डर उन सपनो का,जिनमें तु,
तु रूठी, मैंने मनाया,बातें हुई.

सोचा क्यों यु के तु चीज़ क्या?
जाम पिए गए,तु में (मैं) हुई.
जब से जहाँ में गुफ्तगू शुरू हुई,
रात स्याह थी बेहतर था,क्यों खुशबु हुई.

तुझे छुआ तो पता चला,
पत्थर खुदा,तु क्यों खुदा हुई.

रिश्ते पनप उठे उन लोगो में,
लबो पे गालियाँ थी जिनके,नज़रें भी पैदा हुई.


रास्तों में धुल का चलन हैं,
क्यों कहो ये अभी शुरू हुई.


वो बाँहों में तुझे लेकर बैठा भी रहता,
क्यों बोल पड़ी,के तु हुई.


सांसों का चलन बेहतर था क्या कहे,
सांसों को भी ये बात मालूम हुई.


रोने को किस कदर तड़प उठा,
जुस्तजू कोई,तु नशा कोई.


झगडा तो सुबह -शाम का हैं,
आ फिर,ज़िन्दगी की सुबह हुई.

Friday, December 16, 2011

मैंने उन सब को अलविदा कह दिया,
जो सोचे बहुत,बोले बहुत!
आईने मैं जो तुम हो,
चेहरे के सिवा सब झूठ.

तुम मसरूफ हो लोगो में,
लोग,तुममें मशरूफ हैं हरदम,
न वो तुम्हें जानते हैं,न तुम उन्हें.
बुद्धिजीवी नहीं हूँ मैं,
न बन सकता हूँ.
बन तो मैं कुछ भी नहीं सकता.
मैं तु नहीं बन सकता,
मिटटी नहीं हु मैं,
मैं मिटटी भी नहीं बन सकता.
मेरे दोस्तों,
में अब अकेले सफ़र करूँगा,
तुम्हारी याद आएगी,
कुछ दिन अकेले रम,कुछ सिगरेटें पी लूँगा,
पर वापिस नहीं आऊंगा.तुम्हारे पास.

कही पर भी रात बसर कर लूँगा,
तुम नहीं चाहिये,में कही भी रो लूँगा,
हँसता रहूँगा खुद-बा-खुद,
जमीं पर सो लूँगा,
पर वापिस नहीं आऊंगा तुम्हारे पास.

मुझे कोई समझ नहीं,न मेरी -न तुम्हारी,
तुम मेरे बिन जी लोगी,
मैं तुम्हरे बिन जी लूँगा,.
पर वापिस नहीं आऊंगा तुम्हारे पास.
कुछ यूँ ,ज़िन्दगी पे गुज़री हैं,
रात आधी तुझपे,आधी दिवार पे उतरी हैं.

वो गुम हैं,के कोई आयेगा जरुर,
आशिक पे क्या,बहुत ज़माने पर गुजरी हैं.

किन लबों पे हैं तु,तेरा नाम,
चुके शराब गले से पूरी नहीं उतरी हैं..

हर रोज की इबादतों में जिस्म,
नमाज़ी शर्म कर,खुदा पे क्या गुजरी हैं.


जमाना अब जब मेरी बातें करता हैं,
मुझे चाँद,दुश्मन सा लगता हैं.

यूँ  कर देते हैं वो हंसकर,
के कोई खुश्बू को,देखा करता हैं.

चाहते यु हैं के जैसे कोई,
बंद कमरों में,कपड़े बदलता हैं.
मुझसे कोई कुछ भी कह सकता हैं,
आवारा,जाहिल,कतल तक कर सकता हैं.

सडको पर चलने का मानिंद मैं,
सड़के तक खिंच सकता हैं..

इन दिनों कुछ ऐसा होता हैं,
नींद नहीं आती,दिल नहीं बहलता,
कोई सपने भी चोरी कर लेता हैं..

बरसता था मैं तब ठीक था,
अब काफ़िर बदल भी नहीं गरजता हैं.

मौत भी नहीं सूझती मुझको,
क्या मेरे अन्दर का,मैं तक मर सकता हैं?
बहुत नाराज़ हूँ मैं ,खुद से,
तेरी हंसी,तेरे लब,तुझसे.

युहीं कर लेना शामिल मुझे,
तेरी महफ़िल,तेरी आवारगी,तुझमें.

एक मोहरा हैं ज़माना सा,
कोई रह रह कर मुस्कुराता हैं तुझमें.

इस सादगी के पीछे,ये महजबी,
हर आदम हैं परेसान,तुझसे.
कुछ रास्तों की पैरवी,
कुछ मेरा भोलापन.
खो न दे,कोई शब् कही,
कोई रास्ता कोई पैरवी.

हर जज्बात की कहानी हैं,
कोई रुका हुआ साथ.
बिखरना मुश्किल नहीं,
बिखरकर,काह जाऊ मैं.

या अल्लाह

तुम किस जहा में हो,
मैं यहाँ हूँ,हरे साफे में...

कौन लोग,अच्छा वो,
मैं जहाँ हूँ,वहां लोग नहीं..

जहाँ जहाँ के लोग,बातें,
मुझे कुछ नहीं पता,या अल्लाह..
यु हर इश्क के बाद तू बोले,
देखा पता था,यही होना था..

ये सब बात हैं तेरी,तेरी खुशबु भी..
कोई बेशक एतियात बरते,ये सब तू हैं.

हर एक ज़िक्र मैं तू हैं,बेगम,
तुझे क्या पता सूरज कैसे निकलता हैं..

इस तमन्ना मैं हैं हर कतरा,
के वो तुझ पे बैठे..

तुमने बाल खोल दिए,
नहीं खुले हुए थे..


यु जुस्तजु हैं तेरे इनकार की,
ये करवा,फिरसे बदला जाये..
ये इश्क हैं जो,हर बार बर्बाद रहा,
अब तू आई हैं,चलो इश्क करे..

तेरी उँगलियाँ जो चलती हैं,जिस्म हैं,
दिल चलता हैं,जिस्म नहीं चलता.

.........................................................

के मुक्कदस  खड़े हैं पेड़,आदम से,
के यु लोग,हमें देखते ही नहीं.

हर रोज ये फ़िक्र रहती हैं शेर,
के लोग हमें अब देखते ही नहीं..
ये अफसाने हैं जो तेरे सपूत,
सुन पढ़ लेना,जलने से पहले,
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

जो युही कभी रो देगी,
याद करेगी जैसे एहसान हो..
सिने से लगा कर सो लेना,
जलाने से पहले..
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

काश वो अजनबी शाम फिर आये..
तू मुझको देख के जी लेगी,
मैं तुझको देख के जी लूँगा..
इन्हें एक बार चूम लेना..
जलाने से पहले..
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

काश ज़िन्दगी बस गुजर जाती!

होंठों के बायीं तरफ

तुम्हारे लाल चश्मे के तिमार,पुरे चाँद
तुम्हारे होंठों के बायीं तरफ के तिल पे,कुछ लिख दू
के लोग मुझे आशिक कहेंगे.


इस गुफ्तगू सी हंसी,शर्माना बेशर्मी में,
हर अदा जो चितकबरे बैग में कैद हैं,
में सब बोल दूंगा कसम से..

यु इतराना के जैसे इश्क का नाम भी न पता हो,
पूछना तुम कौन और कहना मैं ये,
कह दू सब कुछ..

हर उम्र कुछ लोग पूछते रहे,
तेरे जेहन में कोई हैं,क्या वो ये हैं,
क्या कह दू?
के लोग मुझे यु भी,आशिक ही कहेंगे.

Saturday, July 16, 2011

Mumbai

1.याद होगा,
परिंदे ने मुझे माँगा था,
तुम्हें माँगा था मैंने,
बारी-बारी हम तीनो खुद मर जायेंगे.

2.कभी छु कर देख होंठ मेरे,
कितना बडबडाता हूँ मैं अकेले में,
सड़क पर लेता हुआ सोचता हूँ,
मैं पागल मर जाता अकेले में.

3.काश तुम्हारे लबों को किसी ने चूम लिया होता,j
खुदा कसम तुम इतनी बातें ना किया करती.

4.फिर एक रात तमाम की तेरे लिए,
कुछ तो बात होगी,
मुक्कदस तेरे लबों ने कुछ आएतें लिखी थी मुझ पर ,
सिने में उतर गयी होंगी.

5.किस हसरत मैं बैठे हो तुम,
के वो गला काट के मुस्कुरायेगा,
ज़मीर बेच कर किताब मत पढना,
किताबो का ज़मीर मर जायेगा.

वक़्त

कैसे बीता ये वक़्त,
सरफरोशों से हम तकते रहे,रूह,
महकता रहा वक़्त.

फ़क्त चार पैरों पर दुनिया नापनी थी,
लोगो ने सुना,चेह्कता रहा वक़्त.

कुछ इलज़ाम लगे,लगाये गए,
फिर साथ आये,जहाँ बना,चलता रहा वक़्त.

जमीं पर किसी ने लकीरें खिची शायद,
धुंआ उठा,इंजन गर्म,धडकता रहा वक़्त.

Wednesday, June 29, 2011

Eye On Dream


A dream of Poet,
Can never Be,as happy,
As this.

Else tears has a sense,
when sense of senseless comes.
Insane are most Qualified,for,
the society!!
Reason Why,
They are not acceptable!

We are living, have died many a times,
and will die again,to get born!
But Mad people Won't get born again,
It's their last Birth,
Purest Of All!
And They are not acceptable.

Love is the purest form,
Still,Will be!!
I wish,It's my last birth,
Getting into fire again and again,
Is a scary thought!!

Somebody has just kept an eye,
on my dream!!
And it's no More!!

Monday, June 27, 2011

पुराना रेडियो

ख्वाबो का ज़िक्र,इतना पेचीदा हैं,
हस्र से पहले,उम्र की पूछ!
और फिर ख्वाबों पर दस्तक देती,
तुम्हारी खुद की अंतरात्मा!

अच्छे ख्वाब बुरे ख्वाब,
ख्वाब ख्वाब होते हैं,
इन्सान इन्सान!

बचपन में माँ के सपने आते थे,
भाई,बाबा की पिटाई के!
फिर दूसरी औरतों के,
फिर नंगी औरतों के,
स्वपन दोष तो सबको हुआ होगा,
एक दो बार!
ये उन दिनों की बात हैं,
जब मोर्निंग शो के लिए,
हम दो घंटा इंतज़ार करते थे!

फिर सपने उसके आये,
जिससे इश्क था,
बहुत सपने आये,
उसके साथ बैठना,बातें करना,
ख़ुशी के सपने!

अब आते हैं सपने,सपनो जैसे,
जैसे लोग बोलते हैं,
सपनो जैसे सपने!
नंगी औरतों के सपने,
जलूसों के सपने,
गोलियों के,मारपीट के,
मगर,मुझे मेरे सपने,
अब कभी नहीं आते!

इतनी भीड़ हैं सपनो मैं भी,
के मैं खुद को,
आइना नहीं बना सकता!
किसी ने मेरा आइना,
मेरे दादा के पुराने रेडियो की तरह,
तोड़ के,कबाड़ी को बेच दिया!

मेरे सपने,
हर उस पोटली या तराजू में हैं,
जो बंद हैं!

मेरे टूटे हुए सपने वही कही हैं,
माँ ही ला सकती हैं उन्हें ढूंड के!


Tuesday, June 21, 2011

वजूद

कलम फैक दी मैंने,
पिछली कविता लिख कर!
फिर उठा लाया,मैं नाम का भूखा!

खाने को रोज शबाब मिले,
पीने को शराब,
देखा हैं ऐसा भूखा.

राजनैतिक नहीं,प्रेमी हूँ मैं,
बस प्यार का भूखा.

सब शुरू हुआ तुझसे,
इकरार का भूखा,इनकार का भूखा!

अंग्रेजी मेरी माँ नहीं,
मेरी माँ हरयाणवी हैं,हिंदी की बेटी,
ऐसे जन्मा मैं,बड़ा हुआ,
नाना के घर!

हर्फों की तलाश कभी नहीं होती,
खुद ब खुद आते हैं,
चश्मे वाली लड़की की तरह,
के कपडे उतर कर भी,
वो चस्मा नहीं उतारती!

सबसे कहता हूँ,
मुझसे इश्क मत करो,
लायक नहीं हूँ मैं तुम्हारे,
इन चीजों के,
कभी मैं समझा हूँ ,तो वो समझे!

हर किसी से लड़ सकता हूँ ,अगर उदास हूँ,
अकेला हूँ,तू याद नहीं,
पर लड़ने के काबिल कहा ,
किसी ने युहीं जो शेर कहा!

वजूद की बात पुरानी कहा,
औरतें तो उसके बहुत बाद आई,
पहले तू आई साथ रही,
ज़हन में,कलम में!
कोई क्या लिखेगा मुझे,
जो में अब तक,
तुझे न लिख सका!

गालियाँ

आजाद था धुआं,अब सांस लेना भरी हैं!
आज़ादी की समझ,आज़ादी से बड़ी बात हैं!
कोयल की चीखें,सबने नहीं सुनी,
कौवे गाते हैं,गाते रहेंगे!

मझदार प्रवृति हैं,संस्कृति थोर उपाय,
तुम्हें वापिस जाना होगा जहाँ  से आये हो!
ये मझदार से पहले की बात हैं!

आइना सबसे नाम नहीं पूछता,
नियमो से पहले बना था आइना शायद,
जो तुम्हें सिर्फ,तुम दिखता हैं!

भूलना राह जवानी की देन,
सब समझ लिया के जैसे जीना भूल गया कोई,
बच्चे सांस लेना भूल जाते हैं,कभी कभी!

हर चोथे पहर,मौत का राग,
अख़बार वाले मर जाते होंगे,
ख़ुशी से मौत बताते हुए!

मेरी गली अब भी खुशहाल हैं,
वहा सब मुझे जानते हैं,
मेरे पिता को भी ,मेरे दादा को भी!

शराबी भी गन्दा नहीं बोलता शराब पीकर,
सच बोलना हर शराबी के बस मैं नहीं,
शराब तो कोई भी पी सकता हैं!

मैंने सब छोड़ दिया था ये कह कर,
की मैं अब नहीं लिख पाउँगा,
गालियाँ देनी आती हैं शराब पीकर,
आज साथ कोई नहीं था तो सोचा,
लिख लू!!

Wednesday, June 1, 2011

माँ

Faces belong to me,
A kid who lost his mother,
A year Back..
Will never be loved like a kid again,
He knows.
Her eyes on dead bed,
He can’t forget.
And that oxygen mask,
Filled with fumes,
She couldn’t cry, She couldn’t talk,
She couldn’t breathe.

Those Moist eyes,
They knew, they are leaving all,
Whom they loved whole their life.
They didn’t bring tears,
Nor they smiled.
They were dead before her.

I still remember,
Her fragile hands on white hospital mattress.
Couldn’t feel my hand.
She held me in her arms,
First touch of my life. ”one tear Rolled, Excuse me”
She gave me first drop,
It’s her, all what I am.
What she felt when she knew?
She is dying every day.
We prayed that she dies.
We couldn't see her in pain.
She was in pain.
She is dead.
Everybody else is living, including me!
Something died in us as well with her.
I am certain.

I remember that temporary lock of bandages,
On that cold room, that night.
Where she slept last,
Before cremation.
I was sitting just outside the room,
I didn’t go inside to hug her.
They said, she is dead.
And I believed them.
They were all professionals.

In white cloth and bandages,
She couldn’t breathe there.
That was too cold and dark,
For a last sleep.
He asked, if I want him to come,
My Friend, Those who come never ask.
I needed him, he didn’t come.
They said, she is dead.
But she died there in that cold room,
For everyone.
Including me as well!
That fragile bandage Door, I didn’t open,
I didn’t go and took her out of that,
Dark and cold.
I didn’t kiss her. I didn’t hug.
Because I knew, She is Dead.
What kind of son, I Am.

In morning,4’o’ Clock,
I didn’t touch her body, I was scared.
Ward boys took her out of that cold chamber,
We paid them.
I was there. I didn’t touch her.
I was scared of her. I was scared of my mother.
I didn’t cry, I had to hold the family.
But she was that same Mother,
Who brought me up.

I was sitting very near,
In that white ambulance, red siren.
I touched her,
To know if it’s her.
I couldn’t feel anything.
That white cloth was cold and wet.
She is inside, what all said.
I couldn’t believe this.
She is not dead.

Everybody was crying,
When she entered home for her last rite.
People started pouring in,
As if she will talk.
I wished if she could.
She was lying there,
Where she never thought,
When she made the house,
In the parking lot of the house on floor.
Not even exactly inside,
Fate changes with breathes.
I understood.

But everybody was crying,
Touching her, remembering her.
I had to be strong,
I didn’t cry.
My siblings,
Our mother died,
We knew.
They all cried,
The way every son should.

Last time came, being eldest,
They called me for last rite.
They told me to hold her, I did.
They told me to put her on her last bed,
Made of bamboo stick,
I did as said.
But one lady I remember so well,
And that moment.
When she came out with her cothes.
She gave me the clothes and said.
“Keep them outside”.
I looked at her,
And water started running.
I never felt so devastated before.
I could just cry.
I cried like a kid.
I cried for my mother.
Than I was certain that
My mother is dead.
My younger brother held me,
We hugged and cried.
I realised,
What does family mean.

She was on my shoulder,
I never thought about that.
She was quite, I was quite,
Everything else was moving with its pace.
People were chanting “Ram Naam”,
I was murmuring the same sometime,
Whenever I  came to senses. I did.
But I could feel her on my shoulder.
Still I can feel her, now I realised.
We walked, reached, finished,
Which had to be finished.
Everything has to be finished.
Everything was so perfect,
Procession, chants, shlokas, last rites!
They kept her on log wood,
I was watching.


I wasn’t sure,
If it’s happening with me
I couldn’t feel anything
I knew what’s going to happen next,
They covered her body with those,
Heavy wood logs,
Only face was visible.
They showed the face for last time,
Maa.
I went ahead and looked at her.
She was sleeping like baby.
Eyes closed, mouth was partially open.
She didn’t had teeth.
I touched her cheeks and said-maa.
I wanted to kiss her; I so much wanted to kiss her,
For the last time.
I looked at her.
And went back, I couldn’t kiss.
They put the log on her face for the last time.


They started the fire.
The moment it happened.
My senses stopped reacting.
I felt very weak and helpless.
I started crying,
I never cried like this.
And never will, i know.
I was crying.
She was inside that fire.
I just cried.
So helpless I was.
I held my brothers,
We hugged and cried.
Looking at the fire.
She was going to be dust,
We cried, we knew,
 This is it.
I don’t know,
Why do we grow,
And age.
We just cried.
People held us.
Took us away.
My other best friend came,
He hugged me.
He comforted me to cry.
I got to know,
What a friend is.
I looked at her till fire stopped.

She was no more,
She is no more.
She comes to my dreams, just like last night.
She doesn’t talk, just see me.
Same I do.
Why don’t we talk Maa.
It has been a year now.
And I wrote this,
It  was inside me.
I died as a kid that day,
With you.
Nobody care for me like a kid now,
Because you only knew,
How I was, when I was a kid.
Please you keep coming in my dreams.
And please do talk this time.
I miss you a lot!
I just don’t cry, don’t say to anyone.
But I do.
I am your kid, your son.


I just didn’t come to meet you,
When you were on your dead bed.
I didn’t know that you gonna leave me.
You went to hospitals before as well.
But you always came back and,
We celebrated everything together.

We celebrated festival this year as well Maa,
But I saw empty faces, some try laughs and giggles,
I didn’t see mirror though.
We all miss you.
I am not a bad son Maa,
You brought me up,
You know it.
I miss you.
Come to my dreams tonight!!

Friday, May 27, 2011

Is it Love?


Dear S,
I can smell cum,
When I see your photograph,
Is it love?

I hated this smell,
Didn’t want to come around,
After that,
You body never tasted sweaty,
You were like a bundle of bones and,
Skin of goat.
Soft but just skin!

We never loved,
Why do you inform about,
Your engagement?
You were engaged too,
When pillow was placed under your butt,
You placed it your self.
And then your hard moans!
That time you were engaged too.

He called up,when we were in middle,
You didn’t pick up,
Kissed me in return.
You remember eating me, those love bites,
 you always said,you are engaged!!
When you came everytime,
You missed that guy,
I think!!
But you kissed me!!
Now you will be just his,
Is this what you are trying to tell me?

Hey But,Answer,
Why I smell cum,
When I see your photograph..
Is it love?...:)



Anyways!!
Wish you a happy married life!!
Love..Sher!!

Allah!

ये रोज की मुलाकातें महंगी पड़ेगी,
सरे बाज़ार तुम्हें आवाज देके बुलाया जायेगा,

कोई पूछेगा नाम बदतमीज़ी से,
तुम्हारा नैन-नक्श दीवारों पर चिपकाया जायेगा.

किसी ने जो तौबा की तुम्हें देख कर,
नज़ारे झुखा लेना,
दीवारों मैं चुनवाया जायेगा!

हद होगी,जब इतना कहर बरपेगा,
मेरी जान,ऐसे हाल मैं,
बस मुस्कुराया जायेगा!

Thursday, May 26, 2011

Skyp!!

कोई कितनी बातें कर सकता हैं दीवारों से,
ये भी बोल पड़ती जो जुबा होती.
कितना आगे तक आई थी दीवारें,
तुम्हें नहीं पता!
बिलकुल चेहरे के सामने,
रेकेट भी हिला था कई बार,गिर जाता
अगर मैंने नज़रें न फेर ली होती.

बस तुम नहीं थी यहाँ,
और बाकि सब था वैसा का वैसा,
पर कुछ भी जिंदा नहीं.

ये दीवारें बोल पड़ती,
ये रेकेट घंटो मुझे युही घूरता रहता,
ये कमरा फिर जिंदा हो जाता,
तुम्हारे आने से.
पर तुम नहीं आई!

चली आओ,
ज़िन्दगी बक्श दो सबको!!

औरत

हवस और इश्क मैं कोई फर्क नहीं,
दोनों बदन में दुह्न्द्ते हैं एक दुसरे को,
तुम जी सकते हो ज़िन्दगी,
जो बस जिस्मों की भाषा सिख लो,
हर सिलवट,रुएँ,तिल छाती पे,
एक एक चोट का निसान,पीठ पर चूम लो,
उसकी रूह के अन्दर जाओ.
रखेले भी औरतें होती हैं,औरतें भी औरतें!
कई दिनों के बाद एक औरत के साथ रह रहा हु मैं,
वो बस चूमती हैं,
कभी बात नहीं कर पाती!!
फिर भी कितना बोलती हैं वो!!

जुबान

यु काट के फैक दी जुबान,
के ज़रूरत ही नहीं!
मैं जो सड़ रहा हु,
उसे इंतज़ार हैं बस परिंदा बन जाऊ,
ताकि मुफ्त मैं सवारी करे!
किसी भी हाल मैं गिरगिट का रंग लाल न हो,
लोहा जलने सी बदबू निगल जाएगी साँसों को!

मुझे हर लोहे का इस्तेमाल आता हैं,
तेरे बदन पर,या ज़मीं पे सर हो!

किसी गाल पे एक तिल देखा था,
वो नंगी थी,पर नज़रें चेहरें पर थी मेरी!

आज शराब जो पी,कई दिनों बाद,
सोचा की जो लड़की घुर रही हैं,उसे पकड़ लूँ,
वहा भीड़ बहुत थी,कितना सोचता हूँ मैं!!

होठ के निचे एक तिल

मुझे समझने के लिए उसने कपडे खोल दिए,
मैंने सिगरेट जला ली,वो समझे भी क्या,
मैं सच में थक गया हु,औरतों की नुमाईश से,
तुम सोचती हो,मैं चाहता हूँ क्या,
सारे बाज़ार आ कर चूम ले मुझे,
इस समाज के नकाब को उतार,
और प्यार कर!
यु हुस्न हैं किस काम का,मुझे इस्तेमाल कर.
बंद कमरे,बंद दरवाजे,छत्ते,रसोई,
सब दीवारों में!
अगर अबकी बार प्यार करना हैं,
तो खुल के प्यार कर!

सिगरेट ख़तम हुई,
उसके हाथ मेरे बालों में चलने लगे,
मैंने नज़र उठाई,
मुझे समझने की कोशिश में,
उसने कपडे उतार दिए थे!!
मैं उससे मिलने कभी नहीं गया!
पर उसके होठ के निचे एक तिल था,
जो मैंने उस दिन काट खाया 
और हज़म कर गया!
शायद उसी के लिए,
फ़ोन पे रोती रहती हैं!!
सिर्फ सिगरेट पीने में,
 इतनी दूर नहीं आऊंगा!!

Saturday, May 14, 2011

ऐश

सारे गवाह मेरे इश्क के मर गए,
कुछ हैं गुमशुदा,बाकी सारे बिक गए.

मैखानो में बची शराब फैकी गयी,
शराब,मैकदे,मैखाने बदले गए.

किसी ने आ कर पुछा मुझसे,
ख़रीदे हुए शायर,कब बख्से गए.

चारदीवारी की तरह,तमन्ना में कैद,
हम बंद दरवाजो में,तरसते रहे.

एक जज्बा हैं जो कायम हैं अभी तक,
वो पास आये,बैठे,मेरे लिए सुबकती रहे.

कितने चेहरों की तलाश करता हैं जिस्म,
हम साथ आये,और बस फुदकते रहे.

हर हश्र का तुझे नहीं पता,पता हैं पीना,
पागलपन,लड़ाई,आवारगी..
तेरी इस ऐश में भी,हम जलते रहे. 


फिर बेगम

ईतेफाक की क्या बात जो तुम सामने हो,
लड़ते रहे हैं बहुत,दूसरो की तरह.

आज कुछ न बोलू,ये भी सही.
तुम भी रहो खामोश,अपनों की तरह.

तमाशें में खेलते रहते हैं परिंदे,
गुबार ज़िन्दगी का,आंसुओं की तरह.

चंद पन्नो में तकदीर हमनें लिख दी,
समझ न पाओगी, किताबो की तरह.

हर हाल में जीना,और मात में पीना,
जिसने सिख लिया..
सवर न जाये, काफिरों की तरह.

शेर ने फिर कहा,तेरे बिना वो मर गया,
मर गया बेहतर....
कही सवर न जाये बेगम,किस्मतों की तरह!!

Tuesday, March 8, 2011

पूरी(उड़ीसा) 3

मेरी जां,कत्ल तो कर,
जीने के बाद,सफ़र तो कर!

हर जिंदगी की साँस गिनी हुई,
जीना हैं,तो खुद का ज़िक्र तो कर!

बंद कर दे बोत्तल मैं,या चाँद पे ले चल,
कुछ तो कर,कुछ तो कर!

........................................................

चार चाँद हैं,कितनी लड़कियां,
कोई तो चांदनी जमीं पर उतारे.

जो हैं,वो हैं,मैं हु तुम हो,
चुप रहो चाँद जमीं पे न उतारे!


पूरी(उड़ीसा) 2

ता उम्र दोस्त मेरे,मशरूफ रहे बहुत,
जो मिले के रोये बहुत,न जाने क्यों?

मिलना तो दो ख्वाबो का दस्तूर हैं,
जिंदा रहे कोई मुर्दा क्यों?

पीने से पहले एक कसम खा लो,
कोई भी बात हो,नाम लोगे तुम उसका जरूर,
पर क्यों?

हर सफ़र,एक मैकदा लगा मुझे,
मैखाने भरे,लोग हँसे,हर जुबान खुश,जख्म क्यों?

मैंने उन सबको अलविदा कह दिया,
जो सोचे बहुत,बोले बहुत,ना जाने क्यों?

.........................................................................

कोई ज़िक्र नहीं तेरे,मेरा,
सपनो मैं आदमी कभी,कहानी नहीं सुनाते!!

........................................................................

ये जुबां सी दो,आग लगी हैं,
बुझा ना दे तुम्हें.

केसरी रंग पहन,जुमला हैं,
खाखी पहनो दहाड़ दो!

कोई तो हैं जो सुनता हैं,तुम नहीं बोलते,
बोल दो,चिंघाड़ दो!

पूरी(उड़ीसा) 1

और करीब आ चूम मुझे,
तेरे अन्दर हु मैं,सब्र नहीं होता!

रोज होता हैं नशा,खुद का,
तेरा नशा अब कभी नहीं होता!

चलो आज गम बाट ले,
ये सौदा कभी नहीं होता!

.....................................................

मज़ा तो एक ही हैं,जाम-ऐ-इश्क,और मुर्दों के जशन का,
हम पीते बहुत हैं,हम नाचते बहुत हैं!

कोंन हो तुम,मेरी जाँ,मेरे लोगो,
तुम काटते नहीं,भोंकते बहुत हो!

....................................................

मुझे कुत्तों से प्यार नहीं,
पर एक जात मैं पहचानता हूँ.
काश वो आदमी होता,
दुम  बेशक न होती.
काश हर आदमी कुत्ता होता!!

...................................................

Friday, November 26, 2010

बांद्रा

हसीन थी वो शायद,पर मुझे कभी उसका रुख,अदा रास नहीं आई.बांद्रा से ऑटो में 4 बजे सुबह घर आते वक़्त में यही सोचता रहा.बड़े होंठ,बड़ी आँखें,एक मकेउप से भरा हुआ चेहरा.आँखों और होंठों के सिवा तुम क्या चूम सकते हो! अभी तक यही याद हैं,बांद्रा में पार्टी के बाद अँधेरे में वो तर-बतर किसी की बाहों में थी,जिसे वो नहीं जानती,सिवाए इसके के वो आदमी हैं,और उसका नाम!ये काफी होता हैं!होंठों के मिलाने और बदन पर उँगलियों की हरकत के लिए.चूम रहे थे वो खुद को ,या एक दुसरे को.कितना बेकौफ कर देता हैं सुख वो जब तुम्हारे करीब हो,जब तुम उससे छु सको.यही हैं उसके पास जो वो किसी मर्द को दे सके,खुद को,जो दे रही हैं!ऊपर आ कर चूम रही हैं,अदा नहीं हैं,औरत हैं,वो भी पूरी औरत, सिर्फ औरत.

बॉम्बे सेहर तुमको वो बना देता हैं,जो तुम सोचते हो,बना देगा!!

आदमी कितना चूम सकता हैं तुम को,जब होंठ खुलने से मना कर दे.कभी होंठों को पूरा खोल कर चूमना.तुम बस पढना चाहोगे,वो सब,जो उसके पास हैं!होंठ ,गर्दन से लेकर कपड़ो के नीचे तक!शुरुवात हमेशा हसीन होती हैं,पता तो हैं कहा पर क्या हैं,वही गर्दन से कुछ दूर छातियाँ,जिस पर तुम कुछ देर बाद अपना हाथ रख दोगे,अब होंठ भी होंठों पर नहीं हैं,ना तुम्हारा मन,ना तुम!फिर सब वैसे ही होगा जैसा होता आया हैं!!तुम आखिरकार समाज की खाल उतारकर एक दुसरे में समां भी जाओ,बेतहाशा चुमों,पागलों की तरह चीखों,काट खाओ!जिंदा हो,जिंदा रहोगे,स्वर्ग मिलेगा एक सेकंड का ज़रूर!फिर बस सांस लोगे!इस उम्र में ये समझाना ज़रूरी नहीं,कपड़ो के बटन बंद करना,खोलना पता हैं,बहुत हैं!कुछ देर एक दुसरे के साथ लेते रहोगे,चुमते रहोगे!कुछ अच्छा बोलोगे या कुछ भी नहीं.अब वो नर्म बदन चुभता हैं शायद.महसूस कर सकते हो.ये रातें फिर आएँगी उसके लिए.औरत हैं,जवान हैं,भूखी हैं.कमी क्या हैं की भूखी रहे!

मलाड आ गया,दूर था,में तो स्वर्ग से वापिस आ रहा हूँ,बस RS 115 !सामने घर दिख रहा हैं!अब में क्या सोच रहा हूँ! उसके होंठ जो शाह लाल थे,उनकों होंठों से छुना!कपड़ो का एक एक करके अलग होना,बरसो लगे होंगे!एक सेकंड के लिए!असल में बातें तो कुछ भी नहीं की होगी या की होगी,कुछ तो कहा होगा,सिर्फ बातें की होगी,हँसते हुए,उंगलियाँ पीठ पर होगी अब भी कुछ खोजती हुई,या होंठों पर जो अब भी लाल हैं,बेहद खूबसूरत हैं,सच तो वो हैं पीठ पीछे!मर्द की उँगलियाँ कभी झूट नहीं बोलती!वो उसे औरत की तरह नहीं देख पायेगा,औरत नहीं बन पाएगी वो उसके लिए,ऐसे रिश्तों का नाम नहीं होता!जो चीज़ें सांस नहीं लेती सड़ जाती हैं!क्या अभी भी कुछ खोज रहा हैं वो तुम में,क्या दोगी तुम उसे अब!तुम्हारे चेहरे पर क्यों टिकेंगी उसकी नज़ारे,जब वो तुम्हारे कपड़ो के आर पार देख सकता हैं,चूम सकता हैं तुम्हें,बिना होंठों को करीब लाये!पास बैठ कर बातें करेगा क्यों,जब बातें बस एक सेकंड की हैं!उम्र बीत जाएगी,तुम उससे इश्क करो शायद या ढोंग करो!भूख तो शांत करनी हैं!सुनो जिसकी बाँहों में तुम लेती हो,जिसके चेहरे पर तुम्हारे बाल,तुम्हारे होंठ जिसके कानो को छु रहे हैं!जब तुम लोगो की साँसें तेज़ हैं!तुम उसके जिस्म पर हाथ रख कर,अपनी और उसकी छातियों की रफ़्तार नाप सकती हो.और सुनो एक बात और, तुम इस मर्द के लिए औरत नहीं बन पायोगी,परी बेशक!!

Thursday, October 21, 2010

शायर

मैं अकेला हूँ,
ये हर हसीं को पता हैं!!

पता हैं मेरा पता,
शायर हूँ,उन्हें ये भी पता हैं!!

सुबह-ओ-शाम  घर में रहता हूँ,
बंद कमरों,आइनों में रहता हूँ!!
पर वो आकर कागज़ पर बैठ जाती हैं,
ज़बरदस्ती मुझसे इश्क करवाती हैं,
कभी मेरे कानो को दांतों से काटती हैं,
कभी मुझे चूमती हैं,चूमती जाती हैं!!

मैं अकेला हूँ,
ये हर हसीं को पता हैं!


पता हैं मेरा पता,
शायर हूँ,उन्हें ये भी पता हैं!!!!

क्या सपने में भी,तेरे घर जाता हूँ मैं?

एक ही गलती बार बार दोहराता हूँ मैं,
तेरी गली में जाकर,लौट आता हूँ मैं!!

में रोता नहीं, की जहाँ बरसेगा,
इल्तजा-ऐ-दिल,बरस जाता हूँ मैं !!

कोई तो करीब रहे,एक मुर्दा रूह के,
के किसी को अब, भूलता जाता हूँ मैं !!

आज कल आईने में देख के खुद को,
डर जाता हूँ में,घबरा जाता हूँ मैं !!

बिना बात तो गुफ्तगू भी नहीं होती,
तेरे मामुल(१) पर,दिल को बताता हूँ मैं !!

कोन पीता हैं,की नशा ना हो,
नशा हैं ,तभी जीता जाता हूँ मैं !!

हर एक को मालूम हैं,तेरा पता,
क्या सपने में भी,तेरे घर जाता हूँ मैं ??

१ मामुल -ख्याल/याद

एक शायर कुछ भी कर सकता हैं

जिस्म बिखेर सकता हूँ में,
जमीं,मेज़ जहा लिखता हूँ,
गोद,बिस्तर पे,
अपनी एक एक निगाह पे!!

एक शायर कुछ भी कर सकता हैं!!

खुद को तार तार कर,
में सांस लूँगा,में तुझे देखूंगा,
टूटे हुए आईने में,
तु हज़ार बार दिखाती हैं...

एक शायर कुछ भी कर सकता हैं!!

के हम बस इश्क करते हैं,
सीपियों में मोती की तरह!!!

मिय्याँ शेर सुनाइये हमें!!

लो मैंने उसे सफहें सा मिटा दिया,ज़िन्दगी से,
और तुम कहते हो,
मिय्याँ शेर सुनाइये हमें!!

कभी सुनना हैं तो,खूब पिलाओ हमें,
कभी बन कर जो तुम ना हो,
रिझाओ हमें...
कभी बेगैरत हो जाओ,और खो दो,
जो तुम ना हो!!
अपनी नाक ,आबरू दफ़न करो,
सर-ऐ-आम कहो,में आशिक हूँ,
आशिक हूँ में!!

रुला दूंगा तुम्हें,
ये इश्क हैं!!

उसे में क्या कहू.

आज फिर लड़के सा लगा मुझे,खुद.
रुखसार भीग गए.
सिगरेट जलती हुई,आधी बुझा दी,
दिल भी जलता हैं,इन दिनों बहुत,
बहुत तपन हैं,बहुत तड़प.

भूख थी इश्क की,
इश्क करता रहा,करता रहा.
बस और क्या कहू,क्या लिखू,
कुछ नहीं सुझाता.

बीयेर का नशा उतर रहा हैं,
तेरा ना जाने कब उतरे,
दिल हमेशा सोचता हैं,
की में ऐसा क्या करू,
उसे में क्या कहू......

बॉम्बे

कभी बरसे बॉम्बे ,
समझाना में आस-पास हूँ,
एक प्यास हैं तुझे,
तुझे छुना चाहता हूँ...

बारिश में बहार निकल आना!!

कभी चुप चाप बैठे रो देना,
मुझे सोच कर,
हिसाब बराबर हो जायेगा!!

तुम भूल जाओगी मुझे,में भी भूल जाऊंगा.
यही एक भूल हैं,
जो भूल नहीं पाएंगे हम.

तुम मुझे बहुत याद आओगी !!!

Thursday, October 7, 2010

जिंदा

हमपे क्या बीती ,जान-ऐ--जा ,
बीती तो उस आस पे,
जो अभी तक जिंदा हैं!!

तु करीब आने से डरें,और तु ही चूमे मुझे,
मेरे होंठों से पूछ,
जो अभी तक शर्मिंदा हैं!!

तु मौसमों की तरह,मेरी बाहों में,
यह कफस(1)  नहीं,
मेरा दिल बेशक परिंदा हैं!!

तुझमें जो शर्म थी,बदचलन कहा छोड़ आई तु,
अब मेरे होंठो पर तेरे होंठ,
यही ज़िन्दगी हैं,और बस हम जिंदा हैं!!

1.कफस-पिंजरा

Tuesday, August 31, 2010

रम की बोत्तल-२(माफिया-४,सोनापानी)

ये इश्क जीने की तरह,लाया तुझे ख्वाब में,
हम सोने जो चले ,के नींद आ ही गयी!!

खूब पीकर भी जो हम,ना मर सके,
हम मरे इस तरह ,के मौत आ ही गयी!!

तुझपे मरके, हम सांस लेते हैं,
इश्क ज़िन्दगी हैं जाने-जा ,सांस आ ही गयी!!

बदल बदल कर काफिला ,हम सफ़र करते रहे,
हर सफ़र में ना जाने क्यों,तु आ ही गयी!!

जियो तो जियो,वरना मत जियो,
जीना भी हैं एक नशा,के नींद आ ही गयी!!!

रम की बोत्तल(माफिया-४,सोनापानी)

कर गुनाह के इस इश्क की वजह कुछ और हैं,
तु नहीं में नहीं,ये इश्क कुछ और हैं!!

मेरे जाने के बाद भी तुझको मिलेंगी मोहब्बतें,
वो मोहब्बतें कुछ और थी,ये मोहब्बतें कुछ और हैं!!

हर ख़ामोशी पे लगता हैं,तु हैं हमनशी,
तुने कहा कुछ और हैं,ये नशा कुछ और हैं!!

तुने क्या समझ लिया में हूँ दीवाना तेरा,
तेरी हँसी कुछ और हैं,तेरी बातें कुछ और हैं!!!

में वसियात कर भी दू,पास आने की जो,
तेरी साँसे कुछ हैं,तेरी बाहें कुछ और हैं!!

Sunday, August 15, 2010

कुरेद कुरेद

पत्थरो पर कुरेद कुरेद कर तेरे नाम को,
यूँ पाक कर दिया हैं,आयतें कुरान को!!

यु ही चल चल कर तेरी परछाई के पीछे,
जिन्दा रहने का हुनर आया हैं रहमान को..

रोज देखता हूँ तुझे चाँद के बहाने,
और इसी बहाने का रहता हैं इंतज़ार एक इंसान को..

मर कर भी तुझे पाया तो क्या पाया ,
तेरे संग ज़िंदगी बिताने का अरमान हैं इस बेईमान को..

किसी भी काम का नहीं हूँ में!!

के कोई मुझसे दर्द दे,
किसी काम का नहीं हूँ में,
तेरी जुल्फों के सिवा,
किसी भी शाम का नहीं हूँ में.

कोई बेशक मदहोश करे,
या ले बज़्म में चूमे.
किसी हसीं,
किसी जाम का नहीं हूँ में...

किसी भी काम का नहीं हूँ में!!!

शेर

१. नंगी तस्वीर को,फिर बिस्तर पर सजा दिया किसने,
गोश्त गरम खाओ तो ही सुकूँ मिलता हैं!!

२.लिखने वाला ही वो हैं,जो पी के लिखे,
जो लिखे होश-ओ-हवाश में,मियाँ वो भी क्या खाक लिखे!!

३.कोई मुझे आज तेरी खबर देता हैं,
तु अच्छी  हैं मगर,जिंदा नहीं!!

४.एक बिसात जो ज़िन्दगी ,तो खेल ना इसे.
कांच के टोकरे भरे,ज़िन्दगी भी कही रख लियो!!!

५.जो मैंने कही यु ही लिख दिया,उससे जला दो,
कही वो ना जला दे उसे,
एक आस,
जिसके सहारे तुम रोज रोती हो!!!

६.एक उम्मीद सी बंधे,जब कोई नाम ले मेरा,
बेहतर हैं,में अपना नाम बदल लू!!!

७.कुछ स्याही हर्फ़ बन गयी,कुछ बिखर गयी रुखसार पे,
हम तो बस यु ही, मशहूर हो गए!!!

८.कभी तो आ,की में भी तन्हाँ हूँ तेरी तरह!!!

९.हर दुश्मन लगे दोस्तों सा मुझे,
कुछ दोस्त जो यहाँ, दुश्मन बने बैठे हैं!!!

१०.बेशक ना कोई शौक दे,
ना नवाजे शोहरतों से,
ना मुफलिसों को रहम दे,...

कोई ना बस दुश्मनों को भी,
तुझसा सनम दे!!!!

११.हर आखिरी मुलाकात पर हम सोचते हैं,
बहाने कल मिलाने के,
जो तुमने अलविदा कहा आज,
जाओ तुम्हें  माफ़ किया,
नासमझ हो तुम!!

शेर

मैं शेर..

१.
ऐतराम बंधे हो इससे राज रखो
लोग सुनेंगे,बेवफा कहेंगे तुम्हें
रात को जगती हो तो क्या,
चाँद  नहीं,
ओपरी हवा कहेंगे तुम्हें...

२.
राती राती न जगाया कर..
जदों बुलाऊ,आ जाया कर...

की मोल लगाना तेरी देह  का..
मेरे बिना  ..
जदों इश्क गाऊ,
बिखर जाया कर..

राती राती न जगाया कर..
जदों बुलाऊ,आ जाया कर...

३.
कर कुफ्र जा संभालू न कटी
तु ज़ुल्म कर,बस आह करू
पेशानी पे जश्न अब भी

४.
तुम सब खामोश क्यों,चएको मरे यारो
आज तो चाँद पूरा हैं
और किस चाँद की बात

और किस चाँद की बाततेरा नहीं हैं वो
अधुरा हैं

अधुरा हैं

५.
तु  जलने दे मुझे की बिन मेरे 
आज शाम रोशन न हो..
कही कोई फिर ये ना कह  दे शेर
तुझे महफ़िल  मैं गम  न हो..

६.
कुफ्र की रात थी
तमाशगीर  कहते हैं
बेतहासा  कुफ्र किया मैंने
हर सांस  से पहले हर सांस  के बाद
 बस नाम तेरा लिया मैंने

७.
अगर सुपुर्द-ऐ-खाक करू खुद को तेरे इश्क  मैं
तो क्या संभालोगी  ज़रा
कुछ नहीं
बस तु हैं,
और इश्क हैं यहाँ..
ये कब्रिस्तान  जो दिल हैं महक उठे
जो तु  आई  यहाँ
बेशक  न हो रंग-ओ-रोनक मेरे सेहर  मैं
मैं हूँ यहाँ

तु हैं यहाँ


८.
तुम सिर्फ इश्क  करो
रूहे बदलने  की बातें न करो
मेरी रूह
जहाँ के गमो से भरी हैं
तुम नाज़ुक बहुत हो

९.
नुक्तो कसीदों हर्फो  के फेर  बदल मैं
कमजोर  हूँ अभी
ये रूहानी कलम  का भोझ  तेरी पलकों से उठाऊ  कब तलक
किसे  तमना हैं बने इंसान बेहतर
तु  दर्द दे
इश्क  मैं और ज़ुल्म धा,
कम से कम
बेहतर शायर ही बना


१०.
हम तो यु ही चल देते हैं,

जब भी दाद-ऐ-वफ़ा आये

तुम रहो धुल उड़ाते ,तकते आसमान

तुम्हारी तरफ की न जाने कब हवा आये

ख्वाब

पहले थोडा हँस लू में,
ये बेबसी हैं जो हँसी हैं

तुझे भुलाने की जिद,
एक खौफ ,एक कुफ्र ..
ज़ेहन से जबरदस्ती.

शायद
खुश हूँ में,
खुश हैं तु!!

अच्छा जो हुआ, सो हुआ,
ज़िन्दगी अभी,आधी भी नहीं जी !!

ऐसा करो,फिर चली आओ ख्वाबो  में,
के आग लगनी हैं,कुछ बुझे हुए चिरागों में!!!

Monday, April 26, 2010

माँ

मेरी माँ कहे,
तु जीता रहे..

वो मिटटी  का दिया
जिससे में पढता था कभी,
हमेशा तैयार रहता था शाम के लिए.
वो दिया में भूल गया,
अब टेबल लम्ब हैं,
पर ना जाने क्यों,
वो दिया अब भी जलता रहे..

वो पानी सी शरारतें जो करता था,
तितलियों के पर,
कांच की गोलियां,
लट्टू की रस्सी.
में अब औरतों से खेलता हूँ,
नए खेल हैं मेरे.
पर माँ की संदूक में सब.
अब भी जिंदा रहे..

जब मैं पिए आया कभी में,
घर देर से,
आँखों से सब समझती हैं,
चुप रहे ,शर्मिंदा रहे,
हर नज़र से जैसे लगता हैं,
की चाहें 
वो ही कांच की गोलियां मेरे हाथों में
हमेशा रहे

अब वो इंसान नहीं,
जो जन्मा था माँ कभी,
तेरी आंसों की बातें मुझे,
अब क्यों एक परिंदा कहे.
मैं तुझसे ना मिलु ,
बेसक बातें ना करू,
वो तितलियों के पर,
कांच की गोलियां,
मिटटी की गुलक मैं,
बजते सिक्के तेरे लाल के,
तुझमें जिंदा रहे,
मुझमें जिंदा रहे.

पर मेरी माँ बस सबसे एक बात कहे.
मेरे लाल,
तु जीता रहे..
जीता रहे

Wednesday, April 7, 2010

गुफ्तगू

 एक इश्क मुसल्मा की,तस्वीर यही होगी.
कोई अश्क तेरे लब पे,मेरी कब्र खुली होगी.

पैमाने में भर कर भी,दे दू जो वफायें
एक लो भुझी होगी,तुझे प्यास लगी होगी.

गुफ्तगू की तरह तु मिले मुझसे,
एक नुक्ता लगाये,जो दुपट्टा संभाले.
एक आग थी,
हमने तो भुझा दी थी,
देख तुझमें लगी होगी.


नाक बड़ी,तेरी बहुत बड़ी,
तु बखारे हरदम ,
मेरी तुझसे मिलाने की ख्वाहिसें,
जब एक रूह का कतल  होगा ,
तेरी नाक कटी होगी.

एक ज़ख्म आवारगी में,
खा के तुझे तौबा हैं,
लोग तो जिंदा दफन  हैं,
तेरी जान बची होगी

कोई अश्क तेरे लब पे,मेरी कब्र खुली होगी.

Sunday, February 14, 2010

A POET.



Love used to be,
a word for me.


I wish to be,
a word for love..

Some-things are better,
to be unsaid..

But for these unsaid,
you need some-body,
To love,
or get loved.

Whispers,Lip-Locked,
holding hands,

talking mad..
it's good,
to be in love..

But never be in love,
like i do,
A Poet..

Talking about love,

But never,
been in love,

Never
get loved..:-)

इन्तेहा

 तुझे कब से गुमा हैं,
की तु आस्मां हैं

में तो वही का हूँ,
जहा की तु हवा हैं

तु उन्ही लबो की कशिश  हैं
जिन्हें मैंने अभी अभी छुआ हैं

की तु कितनी बेपरवाह हैं मुझसे,
क्या तुझे कुछ भी नहीं पता हैं

अभी अभी  मस्जिद जो गया में,
लोग कहे तेरे लिए
 की खुदा अभी अभी आ कर गया हैं

किन सब से बचाऊ खुद को,
तुझको,

आस्मां से,हवा से
तेरे लबो से,
या खुदा से

मस्जिद जाऊ या न जाऊ..
इन्तेहा हैं
इन्तेहा हैं

Monday, January 11, 2010

जादू

कोई जादू न तुमसे बेहतर ,
मुझ पर तुम कभी भी छा जाती हो...
न मौसम, न दस्तूर ,न तुम रूबरू
मैं झाड देता हूँ बिरजू को भी
और फिर हफ्तों खुद से लड़ता रहता हूँ..
पुराना संदूक हैं या प्रेत
जो खुद गिर जाता हैं.
कब तक संभालूँगा तुम्हारी बातें
चंद आंसू ..हंसी ..तुम्हारी हर अदा
जो चंद चिठियो की शकल में,मेरे सामने
बिखरी हैं....



यही सोचता हूँ..
कोई जादू न तुमसे बेहतर...

Thursday, December 31, 2009

कासिद

जिल्ले सुभानी पर जब-जब तेरा नाम आया
कोई कासिद झोले मैं दिल थाम आया
आ कर कहता मेरी रूह से
जो बरसो से कुर्सी पर बैठी जैसे
उसकी ही बाट मैं हो
बाबु जी बाबु जी
पैगाम आया  


मै जैसे मांगी सी मन्नत  सा
पेड़ से बंधा
वो पुराने रंग बिरंगे कपडे का छोर
जो उड़ रहा था,छुटने के लिए पेड़ से
या अल्लाह
आज मन्नत का दिन आया

अब आरजू कौन छाते
कौन हाके फिर ये जिगर पैरों से
जब कासिद ने पढ़ा ये ख़त
तुने बेशक कुछ न लिखा मेरे बारे मैं
फिर भी क्यों हर लफ्ज़ मैं जैसे
बस मेरा नाम आया

मैं सोच ही रहा था
की अचानक शब्द बंद
सुनसान फिर उस खली कुर्सी पर बैठा मैं
कासिद ने फिर कहा
बाबूजी,
लगता हैं आज फिर
किसी और का ख़त,
आपके नाम आया

उसकी घंटी की आवाज
 मद्धम हैं अब
वो दिखाई भी नहीं पड़ता
मैं टटोलता आपा
सामान बांध रहा हूँ सफ़र का
यही सोचता हूँ ..
की ये सामान
इससे बेहतर न  कभी,
मेरे काम आया

कब से मेरे पते पर गलत नाम से
ख़त भेजती हैं वो
इश्क हैं उसे सदियों से
और सदियों से ख़त भेजती हैं वो
पूरी उम्र प्यासा रहा मैं
मुझे कुआँ लिखती हैं वो
कौन कुआँ..कौन  प्यासा
कभी न ख्याल आया...............

Friday, September 4, 2009

लब

लब क्या हैं ,क्यों हैं,
लबो के नाम से ही,हमें शर्म क्यों हैं ॥
ये पुरजोर कोशिशें अवाम दर अवाम रही
मेरी ये नज़म बदनाम,थी,बदनाम हैं॥
बरसो बदनाम रही॥

की इश्क क्यों हैं मुझे तुम से
वो न जाने क्यों पूछती रही
कब तक मुझे ख़ुद मैं
ख़ुद को मुझमें दून्द्ती रही
उसके लबो से औरत की आशिकी बोलती रही॥

लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो ,न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही

हज़ार बार इज़हार किया
हज़ार बार इकरार किया
हर बार शर्माती रही
तहजीब हया की बताती रही

लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही


वो नादाँ थी,
पर शोखी की गजब
वो नम धरती सी महकती रही
मेरी रूह मुस्कुराती रही

वो चूमती रही


इश्क तो बरसो से था
आज वो छाए गई
अपने लबो से मेहरबानियाँ
लुटाये गई॥

वो चूमती रही


कुण्डी आदे कब खड़ी थी वो.
की मैं उससे बोलू
तब नासमझ थी मुझसे
अब मुझे ये जताती रही

लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही

बस
चूमती रही... :-)




Thursday, August 13, 2009

सलाम ज़िन्दगी


आंधी,मोड़ी
राजा रानी,प्रेम कहानी,
मीठी ठण्ड
गाँव का बचपन,
गिल्ली डंडा
उसका स्वपन
सुबहो शाम
हर रुत को,

सलाम ज़िन्दगी

कीकर पे,रोड पे,
किसी के सर पे,
किसी के घर मैं,
दोनों जोड़े हाथों मैं,
किसी किसी के दिल मैं॥
हर बुत को,

सलाम ज़िन्दगी

कंधे पर लटकी हुई,
भूख से बिलखी हुई,
तीनो रंग लिपटी हुई,
जादो मैं सिमटी हुई,
मिटटी से तकती हुई,
खून से ल्थ्दी हुई,
दर्द से मिटती हुई,
एक एक ज़िन्दगी को,

सलाम ज़िन्दगी॥

बॉर्डर पे जवान को,
खेतों मैं मरते किसान को,
होड़ मैं लगे विज्ञानं को,
राजनितिक अज्ञान- को,
१०० मैं से एक विद्वान को,
किसी के गले मैं पड़े कीमती सामान को,
तेरी नज़रो को,उसके अभिमान को,
रोज सैकडो पैदा होते,
कन्यादान को,............:-(


चलिए चोदिये...
जो कहना था,वो तो भूल ही गया,
हम बेह्तार हैं.और बेहतर बनेंगे,
सबसे बेहतर बनेंगे ,
तो,
बरहाल.......
अपने हिंदुस्तान को...

सलाम ज़िन्दगी
सलाम ज़िन्दगी...:-)


happy Independence Day..:-)



Thursday, August 6, 2009

मैं कोटर...

ज़द की ख़बर किसे,
बह कर भी प्यासा हूँ।
कोटर की तरह जिद मैं हूँ,
सिर्फ़ तुझे पाने की....
ये बरसे,
मैं पुछु ख़ुद से,
मेरा सावन कब आएगा.....:-)

आशिक

तुम्हारे जवाबो के जवाब ना दे पाए,
सोचो कितने,
कमज़ोर आशिक हैं।
तेरी कही मेरी सुनी बातों को,
कई रात पढ़ते रहे,
ठीक कहा,
लाचार आशिक हैं।
तुम तो बोल देती हो कैसे भी हमारे लिए,
तेरी हर बात के हज़ार मतलब,
क्यों हम अब इतने,
समझदार आशिक हैं।
कभी आना चाँद देखेंगे साथ,
जो हूँ तुम्हारे ही रहमो करम से हूँ बेगम,
अब जो लोग कहते हैं इश्क मैं,
बेकार आशिक हैं!

हकिमत

इन लबो के ज़ख्मो को बरसो,
मरहम ही लगे हैं ख़ुद से.
यु ही ये हाकिम इश्क का,बस आशिकी मैं,
शायराना ना हुआ।

जो पूछती हो कहा कहा इश्क बसा,
ठहरो खोजने दो।
अभी कहा जमाना हुआ।

तेरी बेरुखी और इश्क कबूलने मैं,
धागे भर का फर्क हैं।
फ़िर कहना कौन किसका,
दीवाना हुआ.

हिसाब

हर वादे पर ना ,तू चुप रहे,
दुश्मन ही बन जाओ,
तुमसे बदला करे।
नजरो को थामो जायज़ नही,
कह दो इन्हे,हमें फन्हा करे।

मत पूछो हिसाब इश्क का,
दिन उँगलियों पर न आए,
तो क्या करे।

Wednesday, July 22, 2009

राजे...कामिनी...

बड़ी बेहया होकर तेरी,
रूह को झाकते हुए,
ये रात बदचलन,
मैं कामिनी,
जैसे बरसों से खड़ी हूँ चोखट पे,
राजे,
पहरों
की तरह बोतले बिखेरी हैं तुने
और बस,इश्क चदा के आई हूँ मैं....

कदम पड़ा,
वो उठा,
मैं देख रहा था,
अब मुझे...
नज़र उतर गई
रोसे मन की,

रास मन तक...

सारी चूडियाँ चुप थी जवानी की,
जब थामा था उसने मुझे,
प्यास को,
अंजुली करके जैसे पानी पीते हैं.....

अधरों का स्पर्श,
जैसे स्वर्ग से आगे कोई थोर हो,
या सिर्फ सफर रहे ,
ता उम्र......

रात की आवाज दबे,
पत्तियां पवित्र सी,
बूंदों से,
वो मंहगे जेवर,जोड़ा,
तन छोड़ रहा हैं,
सावन का नाग हूँ शायद,
बादल बरस रहा हैं.....

आज न तू बोले ,न मैं सुनु,न कोई वादा,
तेरे लब अपने बदन पर,
यु ही सी दू,
तो बेहतर ,
खू को भी इसका अंदाज़ मिले,
न जाने फ़िर कब..मेरी रूह॥
तेरी रूह को॥
इतनी पास मिले...

एक हो जाना ,ना झूठ हैं,
इश्क हैं,
मेरे हाथों को बंधाते तेरे हाथ,
कहा परे हैं प्रेम रस से,
अस्थिर स्वास,
कहा चलती हैं बस मैं,
ये तेरे नेत्रों का रंग,
आजीवन कारावास,
मेरा मन,
चंदन के वृक्ष सा,

तुझसे लिपटा,मेरा तन....

जोड़ा साँप जैसे,
तेरे होंठो से लिपटे मेरे,
होंठ घंटो,.....घंटो.....
बिचदना आखिरी बार,
जैसे
सात जन्म लगे हो,

जिए हो,
फ़िर भी अगले सात जन्मो का वादा,
कर ही बैठी,
मैं कामिनी..

वो उसके इश्क की खुशबू
चोखट पार करने के बाद भी,
उम्रो महकी,
मेरी तमन्नाओ सी,

आज 85 बरस की हूँ,
मेरी पोती का बयाह हैं,
किसी राजे से....
शायद तभी याद आई मुझे जवानी,
जब दुल्हन बनी थी मैं राजे की,
एक रात पहले की बात हैं,
मेरे निकाह से...

धन्यवाद....


Monday, June 22, 2009

Window

Some feelings are very sacred and,
pure for me....

I dare,
to prove them again and again.
I dare,
if i'll do that,
it'll be common as air,
and the way you breathe.
I dare,
these words,feelings and,
emotions will be common for you..
And i dare,
taken as granted by you

I dare of love to you..
Of love to you...

i'm helpless..not
hopeless..
I dare,
don't prove my love to you..
but yes,
I Love You...

Darling,i dare...
you are for sunset..
for sunrise..
And i dare..
window of hut on that mountain,
where i'll live my life,
in love.
Just wood,
without you...

At last,i dare,
you've 100 man..
but if you are not on that window..
i'll be single for life time..
I dare,
in love with you for lifetime.

I dare,Begum,i dare..
standing near the window..
waiting sunrise.
waiting you...