Thursday, March 27, 2014

लाल लटटू


तेरे धोले दातां ने ख़ून चखया से कदे ,
के तन्ने कड़े भरा मेरी जाँघ में बुड़का।

आजकाल बजारा में लाल लटटू जले से,
आज भी माँ गाल में खड़ी रेह से,
आज भी उसने चोटी काढण का टैम  न लागता,
आज भी मरे काग,नालियां में सड़े से.

तन्ने ते कही थी के तू तितली पालेगा,
तन्ने ते कही थी तू शिकार करेगा कुत्ता का,
तन्ने ये पन्ने  ते भर दिए, अर बन्दुक भी.
इब्ब  नू बता तेरी बेबे कि मांग कुन भरेगा,
 रणधीर, म्हारा  ख़ून  कागा के ऊपर ऐ तरेगा। 

कुन से जंगल, कुन से शिकार माणस। के चाइये खात्ते - पीते घर के कुंगर ने. नु ऐ ते कोए  बन्दुक न था लेता। नु ऐ ते कोई ना लाग जाता रेहान खेता में भगौड़ा की तरीया। 

जिस देश ते मैं आया हूँ उड़े जंगल, पहाड़, गुफा, समुन्द्र ना से लुकण ताही। उड़े बस खेत से सब ख़ातिर। 

रणधीर बिजली था चाहे गाम ने कदे न देखी हो. तन्ने एक बात का बेरा से श्याम - जीब  गोली चल्ले से ते किसे एक गाम में एक माँ मर जा से. 

श्याम - मेरी माँ ते कद की मर ली, पर जद गोली चले हैं ते छात्ती पाटे से। 

हम माँ बनगे से रणधीर, या छाती पाटे से.