Monday, April 23, 2012

१.
दो प्याली चाय पीना कहा बेहतर,
ज़िन्दगी मैं शक्कर घोलोगे ,मर जाओगे.

२.
नाम देती रहती हो,
जैसे तुम मेरा नाम ही नहीं जानती.

३.
मैं अगर पालतू होता तो बहुत आगे जाता.
अफ़सोस.



४.
कुछ तो आँखें या नशा,
किस रात की बात किस रात.

 

५.
ख्याल ढूँढना,वाहियात पेशा हैं मेरा.
कभी उड़ना,कभी नहीं,
कभी.


६.
तुमसे तो इश्क भी न हुआ,
जिसका तुम दम भरती थी.
दूर से देख मचलती रही,
तितलियों की तरह जलती रही.

जुगनू दिन में उड़ते होंगे,
वो रोशन हो तो शाम हुई.

मैं पर भरोसा तो सबको था,
तु आई,समझ फुर्र हुई.

हाथ में खुदा थाम के भेज दिया,
ये तो बस ज़िन्दगी जीनी हुई.

कुछ लोगो ने शरारतों से नाम लिया तेरा,
रात अब सजा हुई.

डर उन सपनो का,जिनमें तु,
तु रूठी, मैंने मनाया,बातें हुई.

सोचा क्यों यु के तु चीज़ क्या?
जाम पिए गए,तु में (मैं) हुई.
जब से जहाँ में गुफ्तगू शुरू हुई,
रात स्याह थी बेहतर था,क्यों खुशबु हुई.

तुझे छुआ तो पता चला,
पत्थर खुदा,तु क्यों खुदा हुई.

रिश्ते पनप उठे उन लोगो में,
लबो पे गालियाँ थी जिनके,नज़रें भी पैदा हुई.


रास्तों में धुल का चलन हैं,
क्यों कहो ये अभी शुरू हुई.


वो बाँहों में तुझे लेकर बैठा भी रहता,
क्यों बोल पड़ी,के तु हुई.


सांसों का चलन बेहतर था क्या कहे,
सांसों को भी ये बात मालूम हुई.


रोने को किस कदर तड़प उठा,
जुस्तजू कोई,तु नशा कोई.


झगडा तो सुबह -शाम का हैं,
आ फिर,ज़िन्दगी की सुबह हुई.