Thursday, March 28, 2013

ब्रह्म ज्ञान की बात,
सालों साल का धुवाँ,
खामोश जंगल।
Beep

मुझे सबसे गिला ये हैं,
जाम पिए जायेंगे युही,

मेरे कुछ दोस्त समझेंगे मैं हूँ,
और कुछ पी जायेंगे युही।

ख़ुशी के बाद होगी खुदखुशी,
यार, सब मर जायेंगे युही।
बदनाम होगा हर नाम शराब का,
हर शब् हम गायेंगे युहि.

मेरे न होने पर यही होगा दोस्त,
लोग आयेंगे युही, जायेंगे युही।

दिमाग का दोष हूँ मैं,
सच नहीं हूँ मै।
पनपते मेंदकों की तरह बरसात में,
हर रात पनपता हूँ मैं।
बरसता हूँ मैं, मेंदकों की तरह,
और उन पर ही गरजता हूँ मैं।
शोर हैं कितना आग़ोश में,
आक्रोश में, खोज में।
जिद हैं पैमाने की चाह।
शराब का दम भरता हूँ मैं।
दिमागी भाषा में सच लिखना,
शायर की कलम का दस्तूर है।

मेरे यार सुन, पहाड़ी सर्दियों में,
हम तेंदुवे  बनने को मजबूर हैं। 
मैं हूँ कफ़न में तुम्हें ढूंढ़ता ,
दोस्त जश्न में हैं मुझे ढूंढते।

कारोबार हैं जिस्म भी, समाज हैं,
भाषा , बोली, रंग, लज्ज़त , सब हैं। 
आज फैसला कर ले,
तू जियेगा या मै।

जो अन्दर सांस लेता हैं,
कोंन  हैं,
मैं या तु।

बंध गया हूँ मै विचारों में।
There has to be a namesake,
to kill the origin.

Before you die,
kill one.

It has been long,
Life is hiding.
Bring on the desires of blood.