Wednesday, July 22, 2009

राजे...कामिनी...

बड़ी बेहया होकर तेरी,
रूह को झाकते हुए,
ये रात बदचलन,
मैं कामिनी,
जैसे बरसों से खड़ी हूँ चोखट पे,
राजे,
पहरों
की तरह बोतले बिखेरी हैं तुने
और बस,इश्क चदा के आई हूँ मैं....

कदम पड़ा,
वो उठा,
मैं देख रहा था,
अब मुझे...
नज़र उतर गई
रोसे मन की,

रास मन तक...

सारी चूडियाँ चुप थी जवानी की,
जब थामा था उसने मुझे,
प्यास को,
अंजुली करके जैसे पानी पीते हैं.....

अधरों का स्पर्श,
जैसे स्वर्ग से आगे कोई थोर हो,
या सिर्फ सफर रहे ,
ता उम्र......

रात की आवाज दबे,
पत्तियां पवित्र सी,
बूंदों से,
वो मंहगे जेवर,जोड़ा,
तन छोड़ रहा हैं,
सावन का नाग हूँ शायद,
बादल बरस रहा हैं.....

आज न तू बोले ,न मैं सुनु,न कोई वादा,
तेरे लब अपने बदन पर,
यु ही सी दू,
तो बेहतर ,
खू को भी इसका अंदाज़ मिले,
न जाने फ़िर कब..मेरी रूह॥
तेरी रूह को॥
इतनी पास मिले...

एक हो जाना ,ना झूठ हैं,
इश्क हैं,
मेरे हाथों को बंधाते तेरे हाथ,
कहा परे हैं प्रेम रस से,
अस्थिर स्वास,
कहा चलती हैं बस मैं,
ये तेरे नेत्रों का रंग,
आजीवन कारावास,
मेरा मन,
चंदन के वृक्ष सा,

तुझसे लिपटा,मेरा तन....

जोड़ा साँप जैसे,
तेरे होंठो से लिपटे मेरे,
होंठ घंटो,.....घंटो.....
बिचदना आखिरी बार,
जैसे
सात जन्म लगे हो,

जिए हो,
फ़िर भी अगले सात जन्मो का वादा,
कर ही बैठी,
मैं कामिनी..

वो उसके इश्क की खुशबू
चोखट पार करने के बाद भी,
उम्रो महकी,
मेरी तमन्नाओ सी,

आज 85 बरस की हूँ,
मेरी पोती का बयाह हैं,
किसी राजे से....
शायद तभी याद आई मुझे जवानी,
जब दुल्हन बनी थी मैं राजे की,
एक रात पहले की बात हैं,
मेरे निकाह से...

धन्यवाद....