Tuesday, March 8, 2011

पूरी(उड़ीसा) 3

मेरी जां,कत्ल तो कर,
जीने के बाद,सफ़र तो कर!

हर जिंदगी की साँस गिनी हुई,
जीना हैं,तो खुद का ज़िक्र तो कर!

बंद कर दे बोत्तल मैं,या चाँद पे ले चल,
कुछ तो कर,कुछ तो कर!

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चार चाँद हैं,कितनी लड़कियां,
कोई तो चांदनी जमीं पर उतारे.

जो हैं,वो हैं,मैं हु तुम हो,
चुप रहो चाँद जमीं पे न उतारे!


पूरी(उड़ीसा) 2

ता उम्र दोस्त मेरे,मशरूफ रहे बहुत,
जो मिले के रोये बहुत,न जाने क्यों?

मिलना तो दो ख्वाबो का दस्तूर हैं,
जिंदा रहे कोई मुर्दा क्यों?

पीने से पहले एक कसम खा लो,
कोई भी बात हो,नाम लोगे तुम उसका जरूर,
पर क्यों?

हर सफ़र,एक मैकदा लगा मुझे,
मैखाने भरे,लोग हँसे,हर जुबान खुश,जख्म क्यों?

मैंने उन सबको अलविदा कह दिया,
जो सोचे बहुत,बोले बहुत,ना जाने क्यों?

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कोई ज़िक्र नहीं तेरे,मेरा,
सपनो मैं आदमी कभी,कहानी नहीं सुनाते!!

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ये जुबां सी दो,आग लगी हैं,
बुझा ना दे तुम्हें.

केसरी रंग पहन,जुमला हैं,
खाखी पहनो दहाड़ दो!

कोई तो हैं जो सुनता हैं,तुम नहीं बोलते,
बोल दो,चिंघाड़ दो!

पूरी(उड़ीसा) 1

और करीब आ चूम मुझे,
तेरे अन्दर हु मैं,सब्र नहीं होता!

रोज होता हैं नशा,खुद का,
तेरा नशा अब कभी नहीं होता!

चलो आज गम बाट ले,
ये सौदा कभी नहीं होता!

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मज़ा तो एक ही हैं,जाम-ऐ-इश्क,और मुर्दों के जशन का,
हम पीते बहुत हैं,हम नाचते बहुत हैं!

कोंन हो तुम,मेरी जाँ,मेरे लोगो,
तुम काटते नहीं,भोंकते बहुत हो!

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मुझे कुत्तों से प्यार नहीं,
पर एक जात मैं पहचानता हूँ.
काश वो आदमी होता,
दुम  बेशक न होती.
काश हर आदमी कुत्ता होता!!

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