Friday, November 26, 2010

बांद्रा

हसीन थी वो शायद,पर मुझे कभी उसका रुख,अदा रास नहीं आई.बांद्रा से ऑटो में 4 बजे सुबह घर आते वक़्त में यही सोचता रहा.बड़े होंठ,बड़ी आँखें,एक मकेउप से भरा हुआ चेहरा.आँखों और होंठों के सिवा तुम क्या चूम सकते हो! अभी तक यही याद हैं,बांद्रा में पार्टी के बाद अँधेरे में वो तर-बतर किसी की बाहों में थी,जिसे वो नहीं जानती,सिवाए इसके के वो आदमी हैं,और उसका नाम!ये काफी होता हैं!होंठों के मिलाने और बदन पर उँगलियों की हरकत के लिए.चूम रहे थे वो खुद को ,या एक दुसरे को.कितना बेकौफ कर देता हैं सुख वो जब तुम्हारे करीब हो,जब तुम उससे छु सको.यही हैं उसके पास जो वो किसी मर्द को दे सके,खुद को,जो दे रही हैं!ऊपर आ कर चूम रही हैं,अदा नहीं हैं,औरत हैं,वो भी पूरी औरत, सिर्फ औरत.

बॉम्बे सेहर तुमको वो बना देता हैं,जो तुम सोचते हो,बना देगा!!

आदमी कितना चूम सकता हैं तुम को,जब होंठ खुलने से मना कर दे.कभी होंठों को पूरा खोल कर चूमना.तुम बस पढना चाहोगे,वो सब,जो उसके पास हैं!होंठ ,गर्दन से लेकर कपड़ो के नीचे तक!शुरुवात हमेशा हसीन होती हैं,पता तो हैं कहा पर क्या हैं,वही गर्दन से कुछ दूर छातियाँ,जिस पर तुम कुछ देर बाद अपना हाथ रख दोगे,अब होंठ भी होंठों पर नहीं हैं,ना तुम्हारा मन,ना तुम!फिर सब वैसे ही होगा जैसा होता आया हैं!!तुम आखिरकार समाज की खाल उतारकर एक दुसरे में समां भी जाओ,बेतहाशा चुमों,पागलों की तरह चीखों,काट खाओ!जिंदा हो,जिंदा रहोगे,स्वर्ग मिलेगा एक सेकंड का ज़रूर!फिर बस सांस लोगे!इस उम्र में ये समझाना ज़रूरी नहीं,कपड़ो के बटन बंद करना,खोलना पता हैं,बहुत हैं!कुछ देर एक दुसरे के साथ लेते रहोगे,चुमते रहोगे!कुछ अच्छा बोलोगे या कुछ भी नहीं.अब वो नर्म बदन चुभता हैं शायद.महसूस कर सकते हो.ये रातें फिर आएँगी उसके लिए.औरत हैं,जवान हैं,भूखी हैं.कमी क्या हैं की भूखी रहे!

मलाड आ गया,दूर था,में तो स्वर्ग से वापिस आ रहा हूँ,बस RS 115 !सामने घर दिख रहा हैं!अब में क्या सोच रहा हूँ! उसके होंठ जो शाह लाल थे,उनकों होंठों से छुना!कपड़ो का एक एक करके अलग होना,बरसो लगे होंगे!एक सेकंड के लिए!असल में बातें तो कुछ भी नहीं की होगी या की होगी,कुछ तो कहा होगा,सिर्फ बातें की होगी,हँसते हुए,उंगलियाँ पीठ पर होगी अब भी कुछ खोजती हुई,या होंठों पर जो अब भी लाल हैं,बेहद खूबसूरत हैं,सच तो वो हैं पीठ पीछे!मर्द की उँगलियाँ कभी झूट नहीं बोलती!वो उसे औरत की तरह नहीं देख पायेगा,औरत नहीं बन पाएगी वो उसके लिए,ऐसे रिश्तों का नाम नहीं होता!जो चीज़ें सांस नहीं लेती सड़ जाती हैं!क्या अभी भी कुछ खोज रहा हैं वो तुम में,क्या दोगी तुम उसे अब!तुम्हारे चेहरे पर क्यों टिकेंगी उसकी नज़ारे,जब वो तुम्हारे कपड़ो के आर पार देख सकता हैं,चूम सकता हैं तुम्हें,बिना होंठों को करीब लाये!पास बैठ कर बातें करेगा क्यों,जब बातें बस एक सेकंड की हैं!उम्र बीत जाएगी,तुम उससे इश्क करो शायद या ढोंग करो!भूख तो शांत करनी हैं!सुनो जिसकी बाँहों में तुम लेती हो,जिसके चेहरे पर तुम्हारे बाल,तुम्हारे होंठ जिसके कानो को छु रहे हैं!जब तुम लोगो की साँसें तेज़ हैं!तुम उसके जिस्म पर हाथ रख कर,अपनी और उसकी छातियों की रफ़्तार नाप सकती हो.और सुनो एक बात और, तुम इस मर्द के लिए औरत नहीं बन पायोगी,परी बेशक!!

3 comments:

VIJAY said...

अच्छा लिखा है ....
मगर में उसे थोडा और जानना चाहता था ....अब भी अगर याद है तो.

Unknown said...

bhai mujhe uska naam bhi,mushkil se yaad hain!!haan uske hath yaad hain,honth bhi,thodi thodi hansi,aur khamoshi!!Aur kuch yaad nahi!!:)

aDeeBa said...

Nice piece of expression!
the truth... 'Meethe se kabhi pet nahi bharta'
Atleast thats what I got it in mind by this.. Good!