Monday, April 26, 2010

माँ

मेरी माँ कहे,
तु जीता रहे..

वो मिटटी  का दिया
जिससे में पढता था कभी,
हमेशा तैयार रहता था शाम के लिए.
वो दिया में भूल गया,
अब टेबल लम्ब हैं,
पर ना जाने क्यों,
वो दिया अब भी जलता रहे..

वो पानी सी शरारतें जो करता था,
तितलियों के पर,
कांच की गोलियां,
लट्टू की रस्सी.
में अब औरतों से खेलता हूँ,
नए खेल हैं मेरे.
पर माँ की संदूक में सब.
अब भी जिंदा रहे..

जब मैं पिए आया कभी में,
घर देर से,
आँखों से सब समझती हैं,
चुप रहे ,शर्मिंदा रहे,
हर नज़र से जैसे लगता हैं,
की चाहें 
वो ही कांच की गोलियां मेरे हाथों में
हमेशा रहे

अब वो इंसान नहीं,
जो जन्मा था माँ कभी,
तेरी आंसों की बातें मुझे,
अब क्यों एक परिंदा कहे.
मैं तुझसे ना मिलु ,
बेसक बातें ना करू,
वो तितलियों के पर,
कांच की गोलियां,
मिटटी की गुलक मैं,
बजते सिक्के तेरे लाल के,
तुझमें जिंदा रहे,
मुझमें जिंदा रहे.

पर मेरी माँ बस सबसे एक बात कहे.
मेरे लाल,
तु जीता रहे..
जीता रहे

2 comments:

niren said...

pure, simple, insightful...keep it up bro...

Meewa said...

Wow! Beautiful. Nice way to say--- "Happy Mothers Day"