Thursday, May 26, 2011

Skyp!!

कोई कितनी बातें कर सकता हैं दीवारों से,
ये भी बोल पड़ती जो जुबा होती.
कितना आगे तक आई थी दीवारें,
तुम्हें नहीं पता!
बिलकुल चेहरे के सामने,
रेकेट भी हिला था कई बार,गिर जाता
अगर मैंने नज़रें न फेर ली होती.

बस तुम नहीं थी यहाँ,
और बाकि सब था वैसा का वैसा,
पर कुछ भी जिंदा नहीं.

ये दीवारें बोल पड़ती,
ये रेकेट घंटो मुझे युही घूरता रहता,
ये कमरा फिर जिंदा हो जाता,
तुम्हारे आने से.
पर तुम नहीं आई!

चली आओ,
ज़िन्दगी बक्श दो सबको!!

औरत

हवस और इश्क मैं कोई फर्क नहीं,
दोनों बदन में दुह्न्द्ते हैं एक दुसरे को,
तुम जी सकते हो ज़िन्दगी,
जो बस जिस्मों की भाषा सिख लो,
हर सिलवट,रुएँ,तिल छाती पे,
एक एक चोट का निसान,पीठ पर चूम लो,
उसकी रूह के अन्दर जाओ.
रखेले भी औरतें होती हैं,औरतें भी औरतें!
कई दिनों के बाद एक औरत के साथ रह रहा हु मैं,
वो बस चूमती हैं,
कभी बात नहीं कर पाती!!
फिर भी कितना बोलती हैं वो!!

जुबान

यु काट के फैक दी जुबान,
के ज़रूरत ही नहीं!
मैं जो सड़ रहा हु,
उसे इंतज़ार हैं बस परिंदा बन जाऊ,
ताकि मुफ्त मैं सवारी करे!
किसी भी हाल मैं गिरगिट का रंग लाल न हो,
लोहा जलने सी बदबू निगल जाएगी साँसों को!

मुझे हर लोहे का इस्तेमाल आता हैं,
तेरे बदन पर,या ज़मीं पे सर हो!

किसी गाल पे एक तिल देखा था,
वो नंगी थी,पर नज़रें चेहरें पर थी मेरी!

आज शराब जो पी,कई दिनों बाद,
सोचा की जो लड़की घुर रही हैं,उसे पकड़ लूँ,
वहा भीड़ बहुत थी,कितना सोचता हूँ मैं!!

होठ के निचे एक तिल

मुझे समझने के लिए उसने कपडे खोल दिए,
मैंने सिगरेट जला ली,वो समझे भी क्या,
मैं सच में थक गया हु,औरतों की नुमाईश से,
तुम सोचती हो,मैं चाहता हूँ क्या,
सारे बाज़ार आ कर चूम ले मुझे,
इस समाज के नकाब को उतार,
और प्यार कर!
यु हुस्न हैं किस काम का,मुझे इस्तेमाल कर.
बंद कमरे,बंद दरवाजे,छत्ते,रसोई,
सब दीवारों में!
अगर अबकी बार प्यार करना हैं,
तो खुल के प्यार कर!

सिगरेट ख़तम हुई,
उसके हाथ मेरे बालों में चलने लगे,
मैंने नज़र उठाई,
मुझे समझने की कोशिश में,
उसने कपडे उतार दिए थे!!
मैं उससे मिलने कभी नहीं गया!
पर उसके होठ के निचे एक तिल था,
जो मैंने उस दिन काट खाया 
और हज़म कर गया!
शायद उसी के लिए,
फ़ोन पे रोती रहती हैं!!
सिर्फ सिगरेट पीने में,
 इतनी दूर नहीं आऊंगा!!