Tuesday, June 4, 2013

ठंडा कफ़न

समझ के पार के पर्वत
जिस्म का गीत और लबो की मिठास

हर बरस पर्वतों पर बर्फ गिरेगी ,
हटेगी।

सूरज से प्यार, चाँद से सहवास,
इंतज़ार के पर्वत,
हर गति बढ़ते-बढ़ते ,
थक जायेंगे पर्वत, गुनगुनायेंगे।

नदी में मिलकर,
हमसे मिलने  आयेंगे पर्वत.
बिखर जायेंगे पर्वत,
ज़िन्दगी उगायेंगे पर्वत

किसी चोटी पर मेरा घर बसायेंगे पर्वत।

मेरे यार पर्वत,
क्या तुम मुझे बर्फ में ढँक लोगे।
ताकि मैं न सडू,
ताकि हर साल बर्फ का कफ़न ओडू,
हर साल बरसात भोगु,
धीरे-धीरे गल जाऊ,
मुझे नदी में मिलाओगे पर्वत।

तोते आँख नोच ले ,
गिद्ध मांस,
आत्मा बर्फ बहा ले जाये,
और हाथ, नरभक्षी भालुओं के लिए,
मेरी हड्डियाँ आदिमानव को दे आओगे पर्वत।

मेरे यार पर्वत,
बर्फ गिर दो , ठंडा कफ़न,
मुझे सुलाओगे पर्वत.