Tuesday, May 1, 2012

मैं खुद दिखता हूँ आईने में,मुझको,
मैं टुटा हुआ हूँ,आइना झूठा हैं.
 
ख़ामोशी हैं, मैं घर की सोचता हूँ,
काश दुनिया, मुझे मरा समझ ले.
 
इबादत किसकी करूँ,कोई नहीं,
क्यों ना माँ मेरी,मुझे कोख में दबोच ले.
 
वेह्सी बन गया हूँ मैं,एक अव्वल वेह्सी,
मेरे पास कोई आये,मुझे समझ ले.
 
इस्तेहारों की तरह लोग तकते हैं मुझको,
कभी तो जरुरत का सामान,डब्बे मैं छोड़ दे.
 
औरतों का जिस्म अब खाने को भी नहीं ,
"शेर" चलो,दारू भी छोड़ दे.

No comments: