Thursday, May 3, 2012

अजीब बात हैं मैं लिखना चाहता हूँ
आज से पहले तो मैंने कभी अपने शब्द नहीं काटें.
कभी नहीं सोचा की ये अच्छा नहीं लिखा,
मैं लिखने के लिए लिखता हूँ आजकल.
 
शांत हैं चित,
ना कुछ कहने को,ना सुनने को,
ना लताडने को,
गालियाँ भी नहीं देता,
शराब भी नहीं पीता,
औरतों से दिल नहीं बहलता,
पागल भी नहीं हूँ अब.
सब बेवजह करता हूँ.
मेरा साया सो रहा हैं,
मैं नहीं.
 
कितनी समझ हैं सबमें,
हर एक की समझ,हर एक से ज्यादा,
काश कोई मेरी समझ खरीद ले,
जो मुझे मुफ्त खरीदेगा,
वो ही असली खरीदार हैं.
मैं उससे देखना चाहुंगा,
उसकी आँखें फोड़ना चाहुंगा.
 
जानवर बनने का अपना मजा हैं.
अंधे सब देखना चाहते हैं,
बहरें सब सुनना.
मैं सोना चाहता हूँ.
मैं हूँ,
खुद का स्वपन.

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