Sunday, February 14, 2010

इन्तेहा

 तुझे कब से गुमा हैं,
की तु आस्मां हैं

में तो वही का हूँ,
जहा की तु हवा हैं

तु उन्ही लबो की कशिश  हैं
जिन्हें मैंने अभी अभी छुआ हैं

की तु कितनी बेपरवाह हैं मुझसे,
क्या तुझे कुछ भी नहीं पता हैं

अभी अभी  मस्जिद जो गया में,
लोग कहे तेरे लिए
 की खुदा अभी अभी आ कर गया हैं

किन सब से बचाऊ खुद को,
तुझको,

आस्मां से,हवा से
तेरे लबो से,
या खुदा से

मस्जिद जाऊ या न जाऊ..
इन्तेहा हैं
इन्तेहा हैं

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