Wednesday, April 7, 2010

गुफ्तगू

 एक इश्क मुसल्मा की,तस्वीर यही होगी.
कोई अश्क तेरे लब पे,मेरी कब्र खुली होगी.

पैमाने में भर कर भी,दे दू जो वफायें
एक लो भुझी होगी,तुझे प्यास लगी होगी.

गुफ्तगू की तरह तु मिले मुझसे,
एक नुक्ता लगाये,जो दुपट्टा संभाले.
एक आग थी,
हमने तो भुझा दी थी,
देख तुझमें लगी होगी.


नाक बड़ी,तेरी बहुत बड़ी,
तु बखारे हरदम ,
मेरी तुझसे मिलाने की ख्वाहिसें,
जब एक रूह का कतल  होगा ,
तेरी नाक कटी होगी.

एक ज़ख्म आवारगी में,
खा के तुझे तौबा हैं,
लोग तो जिंदा दफन  हैं,
तेरी जान बची होगी

कोई अश्क तेरे लब पे,मेरी कब्र खुली होगी.