Friday, December 16, 2011

मैंने उन सब को अलविदा कह दिया,
जो सोचे बहुत,बोले बहुत!
आईने मैं जो तुम हो,
चेहरे के सिवा सब झूठ.

तुम मसरूफ हो लोगो में,
लोग,तुममें मशरूफ हैं हरदम,
न वो तुम्हें जानते हैं,न तुम उन्हें.
बुद्धिजीवी नहीं हूँ मैं,
न बन सकता हूँ.
बन तो मैं कुछ भी नहीं सकता.
मैं तु नहीं बन सकता,
मिटटी नहीं हु मैं,
मैं मिटटी भी नहीं बन सकता.
मेरे दोस्तों,
में अब अकेले सफ़र करूँगा,
तुम्हारी याद आएगी,
कुछ दिन अकेले रम,कुछ सिगरेटें पी लूँगा,
पर वापिस नहीं आऊंगा.तुम्हारे पास.

कही पर भी रात बसर कर लूँगा,
तुम नहीं चाहिये,में कही भी रो लूँगा,
हँसता रहूँगा खुद-बा-खुद,
जमीं पर सो लूँगा,
पर वापिस नहीं आऊंगा तुम्हारे पास.

मुझे कोई समझ नहीं,न मेरी -न तुम्हारी,
तुम मेरे बिन जी लोगी,
मैं तुम्हरे बिन जी लूँगा,.
पर वापिस नहीं आऊंगा तुम्हारे पास.
कुछ यूँ ,ज़िन्दगी पे गुज़री हैं,
रात आधी तुझपे,आधी दिवार पे उतरी हैं.

वो गुम हैं,के कोई आयेगा जरुर,
आशिक पे क्या,बहुत ज़माने पर गुजरी हैं.

किन लबों पे हैं तु,तेरा नाम,
चुके शराब गले से पूरी नहीं उतरी हैं..

हर रोज की इबादतों में जिस्म,
नमाज़ी शर्म कर,खुदा पे क्या गुजरी हैं.


जमाना अब जब मेरी बातें करता हैं,
मुझे चाँद,दुश्मन सा लगता हैं.

यूँ  कर देते हैं वो हंसकर,
के कोई खुश्बू को,देखा करता हैं.

चाहते यु हैं के जैसे कोई,
बंद कमरों में,कपड़े बदलता हैं.
मुझसे कोई कुछ भी कह सकता हैं,
आवारा,जाहिल,कतल तक कर सकता हैं.

सडको पर चलने का मानिंद मैं,
सड़के तक खिंच सकता हैं..

इन दिनों कुछ ऐसा होता हैं,
नींद नहीं आती,दिल नहीं बहलता,
कोई सपने भी चोरी कर लेता हैं..

बरसता था मैं तब ठीक था,
अब काफ़िर बदल भी नहीं गरजता हैं.

मौत भी नहीं सूझती मुझको,
क्या मेरे अन्दर का,मैं तक मर सकता हैं?
बहुत नाराज़ हूँ मैं ,खुद से,
तेरी हंसी,तेरे लब,तुझसे.

युहीं कर लेना शामिल मुझे,
तेरी महफ़िल,तेरी आवारगी,तुझमें.

एक मोहरा हैं ज़माना सा,
कोई रह रह कर मुस्कुराता हैं तुझमें.

इस सादगी के पीछे,ये महजबी,
हर आदम हैं परेसान,तुझसे.
कुछ रास्तों की पैरवी,
कुछ मेरा भोलापन.
खो न दे,कोई शब् कही,
कोई रास्ता कोई पैरवी.

हर जज्बात की कहानी हैं,
कोई रुका हुआ साथ.
बिखरना मुश्किल नहीं,
बिखरकर,काह जाऊ मैं.

या अल्लाह

तुम किस जहा में हो,
मैं यहाँ हूँ,हरे साफे में...

कौन लोग,अच्छा वो,
मैं जहाँ हूँ,वहां लोग नहीं..

जहाँ जहाँ के लोग,बातें,
मुझे कुछ नहीं पता,या अल्लाह..
यु हर इश्क के बाद तू बोले,
देखा पता था,यही होना था..

ये सब बात हैं तेरी,तेरी खुशबु भी..
कोई बेशक एतियात बरते,ये सब तू हैं.

हर एक ज़िक्र मैं तू हैं,बेगम,
तुझे क्या पता सूरज कैसे निकलता हैं..

इस तमन्ना मैं हैं हर कतरा,
के वो तुझ पे बैठे..

तुमने बाल खोल दिए,
नहीं खुले हुए थे..


यु जुस्तजु हैं तेरे इनकार की,
ये करवा,फिरसे बदला जाये..
ये इश्क हैं जो,हर बार बर्बाद रहा,
अब तू आई हैं,चलो इश्क करे..

तेरी उँगलियाँ जो चलती हैं,जिस्म हैं,
दिल चलता हैं,जिस्म नहीं चलता.

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के मुक्कदस  खड़े हैं पेड़,आदम से,
के यु लोग,हमें देखते ही नहीं.

हर रोज ये फ़िक्र रहती हैं शेर,
के लोग हमें अब देखते ही नहीं..
ये अफसाने हैं जो तेरे सपूत,
सुन पढ़ लेना,जलने से पहले,
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

जो युही कभी रो देगी,
याद करेगी जैसे एहसान हो..
सिने से लगा कर सो लेना,
जलाने से पहले..
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

काश वो अजनबी शाम फिर आये..
तू मुझको देख के जी लेगी,
मैं तुझको देख के जी लूँगा..
इन्हें एक बार चूम लेना..
जलाने से पहले..
तुझे क्या बोलू,तू सुन लेगी..

काश ज़िन्दगी बस गुजर जाती!

होंठों के बायीं तरफ

तुम्हारे लाल चश्मे के तिमार,पुरे चाँद
तुम्हारे होंठों के बायीं तरफ के तिल पे,कुछ लिख दू
के लोग मुझे आशिक कहेंगे.


इस गुफ्तगू सी हंसी,शर्माना बेशर्मी में,
हर अदा जो चितकबरे बैग में कैद हैं,
में सब बोल दूंगा कसम से..

यु इतराना के जैसे इश्क का नाम भी न पता हो,
पूछना तुम कौन और कहना मैं ये,
कह दू सब कुछ..

हर उम्र कुछ लोग पूछते रहे,
तेरे जेहन में कोई हैं,क्या वो ये हैं,
क्या कह दू?
के लोग मुझे यु भी,आशिक ही कहेंगे.