Monday, April 23, 2012

दूर से देख मचलती रही,
तितलियों की तरह जलती रही.

जुगनू दिन में उड़ते होंगे,
वो रोशन हो तो शाम हुई.

मैं पर भरोसा तो सबको था,
तु आई,समझ फुर्र हुई.

हाथ में खुदा थाम के भेज दिया,
ये तो बस ज़िन्दगी जीनी हुई.

कुछ लोगो ने शरारतों से नाम लिया तेरा,
रात अब सजा हुई.

डर उन सपनो का,जिनमें तु,
तु रूठी, मैंने मनाया,बातें हुई.

सोचा क्यों यु के तु चीज़ क्या?
जाम पिए गए,तु में (मैं) हुई.

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