Wednesday, April 25, 2012

कोई तो हैं,जो बोलता हैं,
सब खामोश हैं,हैं शोर कितना!

इन लिफाफों में हैं सफ़र कितना,
ख़त में इसका ज़िक्र भी नहीं.

तुम्हें कोई भी छु सकता हैं,क्या सोच,
के यु जग की रखैल नहीं हो तुम.

बदल देते हो किसी का भी घर,
क्या जीना भी शिकवा नहीं हैं!

हर साज़ और हर परिंदे का सपना,
सब मर चुके हैं,तुम्हें कुछ भी पता नहीं हैं.

बंजारे रोते हैं तो ताजमहल हैं,
बिक न जाते,जो बस जाते.

किस की भी हिमायत, दर्द हैं,
क्यों न हम हँसना छोड़ दे.

वो मर गया जो जिंदा था,
जो जिंदा हैं वो मर गए.

खाली दीवारों पर लिखना मुश्किल कितना,
काश यु कोरा जी जाये कोई.

इश्क की बात कौन करे.

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