Tuesday, August 28, 2012

तुम्हारे होंठ बुदबुदाते हैं मेरे जिस्म पर,
कहती हो कहानियां में गढ़ता हूँ.
जुबा से जुबा, ऐसे बात करते हैं हम.
एक हारे सांप को पाल लिया हैं तुमने,
अपने नंगे जिस्म पर.
हाथों को विश्वास नहीं होता तुम्हें छुने का,
कलंक को हीरा कैसे बना सकती हो तुम.
अपनी गहराईओं में मुझे, कहा ले जा सकती हो तुम.
आवारा लोगो को तिजोरी की चाबी नहीं दी जाती,
तुम्हे कोई भी ठग सकता हैं, इतनी हँसी हो तुम,
में तुम्हे गढ़ सकता हूँ.
तिजोरी में बंद करलो मुझे.खुद को देखो शीशे में,

सांप का मुंह तुम्हारे मुंह के अन्दर दिखेगा.
ये जिन्दा सांप, तुम्हरे अन्दर जियेगा अब.
खूब चूमेगा.