Thursday, October 21, 2010

मिय्याँ शेर सुनाइये हमें!!

लो मैंने उसे सफहें सा मिटा दिया,ज़िन्दगी से,
और तुम कहते हो,
मिय्याँ शेर सुनाइये हमें!!

कभी सुनना हैं तो,खूब पिलाओ हमें,
कभी बन कर जो तुम ना हो,
रिझाओ हमें...
कभी बेगैरत हो जाओ,और खो दो,
जो तुम ना हो!!
अपनी नाक ,आबरू दफ़न करो,
सर-ऐ-आम कहो,में आशिक हूँ,
आशिक हूँ में!!

रुला दूंगा तुम्हें,
ये इश्क हैं!!

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