Thursday, May 26, 2011

जुबान

यु काट के फैक दी जुबान,
के ज़रूरत ही नहीं!
मैं जो सड़ रहा हु,
उसे इंतज़ार हैं बस परिंदा बन जाऊ,
ताकि मुफ्त मैं सवारी करे!
किसी भी हाल मैं गिरगिट का रंग लाल न हो,
लोहा जलने सी बदबू निगल जाएगी साँसों को!

मुझे हर लोहे का इस्तेमाल आता हैं,
तेरे बदन पर,या ज़मीं पे सर हो!

किसी गाल पे एक तिल देखा था,
वो नंगी थी,पर नज़रें चेहरें पर थी मेरी!

आज शराब जो पी,कई दिनों बाद,
सोचा की जो लड़की घुर रही हैं,उसे पकड़ लूँ,
वहा भीड़ बहुत थी,कितना सोचता हूँ मैं!!

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