Monday, January 11, 2010

जादू

कोई जादू न तुमसे बेहतर ,
मुझ पर तुम कभी भी छा जाती हो...
न मौसम, न दस्तूर ,न तुम रूबरू
मैं झाड देता हूँ बिरजू को भी
और फिर हफ्तों खुद से लड़ता रहता हूँ..
पुराना संदूक हैं या प्रेत
जो खुद गिर जाता हैं.
कब तक संभालूँगा तुम्हारी बातें
चंद आंसू ..हंसी ..तुम्हारी हर अदा
जो चंद चिठियो की शकल में,मेरे सामने
बिखरी हैं....



यही सोचता हूँ..
कोई जादू न तुमसे बेहतर...