Friday, December 16, 2011

मुझसे कोई कुछ भी कह सकता हैं,
आवारा,जाहिल,कतल तक कर सकता हैं.

सडको पर चलने का मानिंद मैं,
सड़के तक खिंच सकता हैं..

इन दिनों कुछ ऐसा होता हैं,
नींद नहीं आती,दिल नहीं बहलता,
कोई सपने भी चोरी कर लेता हैं..

बरसता था मैं तब ठीक था,
अब काफ़िर बदल भी नहीं गरजता हैं.

मौत भी नहीं सूझती मुझको,
क्या मेरे अन्दर का,मैं तक मर सकता हैं?

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