Tuesday, March 8, 2011

पूरी(उड़ीसा) 1

और करीब आ चूम मुझे,
तेरे अन्दर हु मैं,सब्र नहीं होता!

रोज होता हैं नशा,खुद का,
तेरा नशा अब कभी नहीं होता!

चलो आज गम बाट ले,
ये सौदा कभी नहीं होता!

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मज़ा तो एक ही हैं,जाम-ऐ-इश्क,और मुर्दों के जशन का,
हम पीते बहुत हैं,हम नाचते बहुत हैं!

कोंन हो तुम,मेरी जाँ,मेरे लोगो,
तुम काटते नहीं,भोंकते बहुत हो!

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मुझे कुत्तों से प्यार नहीं,
पर एक जात मैं पहचानता हूँ.
काश वो आदमी होता,
दुम  बेशक न होती.
काश हर आदमी कुत्ता होता!!

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