Monday, June 17, 2013

रस्सी

सुनो इन् दिनों कबूतरों ने पंख काट दिए हैं अपने ,
जिस खिड़की से बादल आते थे हमारे घर में,
उसकी दीवारों पर सीलन मर गयी है।

कमरें को मेरे वीर्ये की सुगंध और
 तुम्हारी  छातियों की खुशबु बहुत पसंद हैं,
ख़त में लिख हैं ये सब उसने।

हर कोई उस कमरें के खिलाफ हैं,
कमरा खमोश।
जहा दो सांसें नंगी रहती थी।

पंखा भी इंतज़ार करता हैं सफ़ेद साँपों का।

लोग कहते हैं, कमरें का ईमान मर गया,
सडको में मरते पाश की तरह.
इन् दिनों  इस गुफ्तगू ने दम भर ली हैं।
की पंखें से लटका लिया हैं कमरें ने खुद को,
वो रस्सी जो कोई जर्मन यात्री छोड़ गया था गलती से,
दरवाजे के पीछे जो पड़ी रहती थी,
उससे.

तोसका, उदास मत हो,
मुझे यकीन  हैं.
जब ओल्ड मोंक की महक उठेगी,
कमरा भाग के दरवाजा खोल देगा,
बादलों को बुलाएगा।

ये ओल्ड मोंक की बात नहीं, काले साँपों का पंखें पर झुलना नहीं,
ये ताकि शेर और तोसका नंगे पड़े रहे उस बिस्तर में,
और कहानियाँ कहे,

टोटका, परी, नाग, खून, होंठ और न जाने क्या क्या।
बस यु ही रहे नंगे।

कमरा  नापे, एक दुसरे को जियें।


 

Tuesday, June 4, 2013

ठंडा कफ़न

समझ के पार के पर्वत
जिस्म का गीत और लबो की मिठास

हर बरस पर्वतों पर बर्फ गिरेगी ,
हटेगी।

सूरज से प्यार, चाँद से सहवास,
इंतज़ार के पर्वत,
हर गति बढ़ते-बढ़ते ,
थक जायेंगे पर्वत, गुनगुनायेंगे।

नदी में मिलकर,
हमसे मिलने  आयेंगे पर्वत.
बिखर जायेंगे पर्वत,
ज़िन्दगी उगायेंगे पर्वत

किसी चोटी पर मेरा घर बसायेंगे पर्वत।

मेरे यार पर्वत,
क्या तुम मुझे बर्फ में ढँक लोगे।
ताकि मैं न सडू,
ताकि हर साल बर्फ का कफ़न ओडू,
हर साल बरसात भोगु,
धीरे-धीरे गल जाऊ,
मुझे नदी में मिलाओगे पर्वत।

तोते आँख नोच ले ,
गिद्ध मांस,
आत्मा बर्फ बहा ले जाये,
और हाथ, नरभक्षी भालुओं के लिए,
मेरी हड्डियाँ आदिमानव को दे आओगे पर्वत।

मेरे यार पर्वत,
बर्फ गिर दो , ठंडा कफ़न,
मुझे सुलाओगे पर्वत.

Thursday, March 28, 2013

ब्रह्म ज्ञान की बात,
सालों साल का धुवाँ,
खामोश जंगल।
Beep

मुझे सबसे गिला ये हैं,
जाम पिए जायेंगे युही,

मेरे कुछ दोस्त समझेंगे मैं हूँ,
और कुछ पी जायेंगे युही।

ख़ुशी के बाद होगी खुदखुशी,
यार, सब मर जायेंगे युही।
बदनाम होगा हर नाम शराब का,
हर शब् हम गायेंगे युहि.

मेरे न होने पर यही होगा दोस्त,
लोग आयेंगे युही, जायेंगे युही।

दिमाग का दोष हूँ मैं,
सच नहीं हूँ मै।
पनपते मेंदकों की तरह बरसात में,
हर रात पनपता हूँ मैं।
बरसता हूँ मैं, मेंदकों की तरह,
और उन पर ही गरजता हूँ मैं।
शोर हैं कितना आग़ोश में,
आक्रोश में, खोज में।
जिद हैं पैमाने की चाह।
शराब का दम भरता हूँ मैं।
दिमागी भाषा में सच लिखना,
शायर की कलम का दस्तूर है।

मेरे यार सुन, पहाड़ी सर्दियों में,
हम तेंदुवे  बनने को मजबूर हैं। 
मैं हूँ कफ़न में तुम्हें ढूंढ़ता ,
दोस्त जश्न में हैं मुझे ढूंढते।

कारोबार हैं जिस्म भी, समाज हैं,
भाषा , बोली, रंग, लज्ज़त , सब हैं। 
आज फैसला कर ले,
तू जियेगा या मै।

जो अन्दर सांस लेता हैं,
कोंन  हैं,
मैं या तु।

बंध गया हूँ मै विचारों में।
There has to be a namesake,
to kill the origin.

Before you die,
kill one.

It has been long,
Life is hiding.
Bring on the desires of blood.

Wednesday, October 24, 2012

हुस्ना

वो कलम के खूटे से बंधा था हकीक़त ही थी जो कुछ था। बहस की बात कोंन करता है हुस्ना हैं वो। हाँ, बरसों से हाथों से स्वेटर बुनता हैं उसके लिए।पागल नहीं हैं, न ही उसे मतलब समझ में आता हैं कभी पागलपन का। क्या-क्या नहीं लिखा उसने हुस्ना के लिए, तीन इश्क से तर शायरी की किताबें। पियूष को क्या पता था की जिस  की गली को उसने सच्चाई बना लिया हैं वो कभी उसे देख भी नहीं पायेगा।

आज चोथे पहर के बाद तक पाकिस्तान एम्बेसी में बैठा हैं ताकि मोहर लगे उसकी तक़दीर को। वो धुंध सके वो   चौथा माकन लाहौर की उस गली में, जहा हुस्ना रहती हैं। अफसरों को कहा पता होगा मोहब्बत की हया का। इल्म ही नहीं होगा, कलम जेहन से रूबरू होकर कैसे लिखी जाती हैं। इश्क में कलम टूटना शगुन होता है सजा नहीं। कितना रोया था, ख़ैर उसे तो रोना भी नहीं आता। वीसा के कागाजों को घूरता रहा और अफसर उसे। उसकी दिमागी हालत और समझ, हर एक का प्रमाण सजा के रखा है प्लास्टिक के एक नील लिफाफे में। साफ़ दीखता है शक। और पियूष को कुछ भी नहीं पता, हुस्ना के अलावा।

अफसर ने पियूष की ओर इशारे से दस्तावेज उठाने को कहा और पुछा

अफसर- कहा हैं तुम्हारा स्वेटर।

पियूष झिझकता नहीं हैं, झिझकना दुनिया के चोचले  हैं, वो झेप गया। उसने अपने पास रखे हुए एक डब्बे को खोला और दिखाया।  अफसर खाली  डब्बा देख कर मंद मुस्कुराया और पियूष से पुछा ।

अफसर- क्या स्वेटर बन गया।

पियूष ने तपाक से कहा।

पियूष - हाँ।

अफसर कुर्सी पर आराम से टेक लगते हुए बोला।

अफसर- चौथी बार आये हो यहाँ। कहा रहती हैं हुस्ना।

पियूष - साहब, लाहौर, बड़ा मोहल्ला, चौथा घर।

अफसर ने आगे झुककर धीमी आवाज में पियूष से कहा।

अफसर- देखो पियूष ये डब्बा खाली हैं, चाहते क्या हो तुम।

पियूष ने एकटक अफसर की ओर  ही देख रहा था। पियूष ने कहा।

पियूष- हुस्ना।

इतना कहते ही पियूष की आँखों से आंसू दफ्तार की मेज पर गिरने लगे। के यूँ जैसे आदत हों हुस्ना की . लाहौर के सिवाए इस 50 की उम्र में वो कही नहीं जा सकता। आज अपने घर भी नहीं। अफसर ने पियूष को देख कर कहा।

अफसर- तुम बहुत अच्छा लिखते हो, जो पैसे तुमने लोगो से लिए हैं, वो लौटा दो।

अफसर की ये बात सुनकर, पियूष ने अपने लाल रंग की लिफाफे पर जांच कर हाथ रखा और कहा।

पियूष- ये नज्में सिर्फ हुस्न के लिए हैं, कोई और नहीं पढ़ सकता इन्हें।

 अफसर एकटक देखता रहा पियूष को और फिर दफ्तर में किसी से चिल्ला कर कहा।

अफसर- लाहौर की फाइल लाना।

अफसर देखता रहा पियूष को और फिर आगे झुककर पियूष से बोला।

अफसर- कोई नहीं रहता उस घर में जिसका तुम ज़िक्र करते हों। बस कुछ पठान रहते हैं किराये पर। वहाँ तो खुश्बू भी नहीं हैं हुस्ना की।

पियूष एकटक अफसर को देख रहा था, वो बोल पड़ा।

पियूष-  खुश्बू तो यहाँ तक आती हैं मुझको।

एक कलर्क ने अफसर को आकर एक फाइल थमायी और कहा।

कलर्क- लीजिये जनाब।

अफसर ने फाइल को खोला और ढूंढ़ कर एक कागज़ निकला। अफसर ने पियूष की तरफ वो कागज़ बढ़ाया और  कहा।

अफसर- ये देखो उस घर का 100 साल का रिकॉर्ड। न कोई हुस्ना थी, और नाही कोई हुस्ना हैं।

पियूष ने बडबडाते हुए कगाज़ को हाथ में  लिया और पता जाचने लगा।

पियूष- बड़ा मोहल्ला, चोथा घर।

पियूष कई देर तक कागज़ को निहारता रहा और बडबडाता रहा।

पियूष- बड़ा मोहल्ला, चोथा घर

अफसर पियूष को इस कागज़ में हुस्ना को ढूंढ़ते इत्मिनान से देखता रहा। अफसर ने धीमे से फिर कहा।

अफसर- तुमने उससे अपने जेहन में रचा हैं, हुस्ना हकीक़त नहीं। तुम न दिल्ली के हो, न लाहौर के। सब दिमागी हकीक़त हैं।

पियूष बडबडाते हुए अफसर से बोला।

पियूष- हकीक़त तो हैं। स्वेटर तो बुना हैं। लोग बोलते हैं किसी को दिखता नहीं ये स्वेटर। आप देखिये मेहरून ये स्वेटर।

अफसर एकटक रोते हुए पियूष को देखता रहा और बोला।

अफसर- जाना चाहोगे पाकिस्तान।

पियूष ने अफसर की तरफ देखा और असमंजस में कुछ भी नहीं कहा। बस मन के भीतर देखता रहा स्वेटर। इतनी देर में अफसर ने पियूष के दस्तावेजो पर मोहर लगा दि और स्वेटर का डब्बा बंद कर दिया। अफसर ने पियूष का पागल खाने का सर्टिफिकेट फाड़ दिया जिस में पियूष को मानसिक पीड़ित बताया गया था। अफसर ने सारी कार्यवाही पूरी होने के बाद पियूष से  कहा।

अफसर- हुस्ना के पढ़ने के बाद ये शायरी मुझे दे देना, मैं छपवा दूंगा।

पियूष बस अफसर की तरफ देखता रहा। अफसर ने अपना सामान उठाते हुए पियूष से कहा।

अफसर- शाम हो गयी हैं, मुझे घर जाना हैं, चलो अब।

पियूष और अफसर एक साथ उठ कर एम्बेसी से बहर आ गये। पियूष खामोश रहा , सोचने  को कुछ बचा नहीं हो जैसे। उसने अपना जिन्न शायद वही छोड़ दिया कुर्सी पर जहा बैठा था। हुस्ना से मिल सकता हैं वो , अब पर। मेरी इन दो पंक्तियों में ही वो दोनों एम्बेसी से बहार सड़क पर आ गए। अफसर ने अपनी गाड़ी खोली और तभी कुछ याद करके कहा।

अफसर- अरे में कुछ भूल गया अंदर। तुम जाओ पाकिस्तान। खुदा करे, तुम्हें तुम्हारी हुस्ना मिल जाये।

अफसर उलटे पाँव दफ्तर के अन्दर चला गया। अफसर ने अपनी मेज के अन्दर से एक मेहरून शाल निकली और वो एम्बेसी से बहार की तरफ बढ़ने लगा। अफसर ज्योंही अपनी गाड़ी के पास आया तो उसने पियूष की शायरी का  लिफाफा अपनी गाड़ी के ऊपर पाया। अफसर ने लिफाफे को ढंग से जांचा और फिर चारों तरफ नज़र दोडाई।
 अफसर रोड के करीब एक भीड़ की तरफ भागा, जहा एक आदमी ने ट्रक के सामने छलांग लगा दी थी और उसके आखिरी लफ्ज़ थे हुस्ना। अफसर ने पियूष को देखा और अपने हाथ में पकड़ी मेहरून शाल  पियूष को उढ़ा दी। अफसर ने पियूष का स्वेटर का डिब्बा रोड से उठा कर सीने से लगाया और मेहरून शाल को देख कर रोने लगा।


 

Tuesday, October 23, 2012

शांत नहीं हूँ मैं,
शांत नहीं हूँ मैं,
मुर्दा हूँ।

शहर में कब्र हैं मेरी,
जिसे मैं घसीटता हूँ।
कभी बस, मेट्रो,सडको पर,
घसीटता रहता हूँ।
मेरी कब्र रंग बदलती हैं,
नंग हूँ।
कब्र को कब्र कहलाना या लिखना,
मर जाने जैसे लगता हैं।
मुर्दा होना, जिन्दा होने से अलग हैं।
जीना समझोता हैं।
मैं समझोते से डरता हूँ,

मैं मुर्दा हूँ और लिखता हूँ।
ये पैगाम ऐ मोहब्बत  हैं,
मेरे खुद के नाम।
शाम से सेहर तक, हर देहलीज़ तक,
खुद को चाहा मैंने।

हर कब्र के सामने बैठना, और तारीख गिनना,
मुर्दा होने की कब्र मैं।
या पता करना की,
ये कब से धरती में सोचता हैं।

कीड़ो को माँस  नहीं पता,
खुद के दाँतो  की औकात  पता हैं।
हड्डियाँ जिद्दी होती हैं।
कीड़े सिर्फ खाने के लिए बने हैं,
कब्र, मन, दिमाग, इंसान आदि अनादी।
इस मतलब के कई नाम।

ये पैगाम ऐ मोहब्बत हैं,
मेरे खुद के नाम।
कीड़ो को में गंगा की तट पर मिलूँगा,
या गहरायी में,

हम एक दुसरे को जरूर ढूंढ़ लेंगे।
हया से पहले की सुबह का ज़िक्र,
होली में रंगों की दावा का ज़िक्र।
मिठास जो पनपती रही लबों पे,
हर माशूका, हर पाशा का ज़िक्र।
बोतलों के पिघलते  शीशे,
हवा की वफ़ा का ज़िक्र।
ज़िक्र हर शब,हर चुबन,
बाँहों की मदहोश तबाह का ज़िक्र।

ये ज़िक्र फिर नहीं होगा।
बारिशों में  भीग जाओगी  तुम,
जो इतना नम रहोगी।
जल जाएँगी ख्वाहिशें, तुम्हारे होंठ,
हद बह जायेगी आँखों से।
तुम्हारे नाम का यकीन नहीं होगा तुम्हें,
सिमट जोगी खुद के आगोश में।
ठंढे पहाड़, अकेला मन ,
सोचती रहोगी मुझे, मैं तुम्हें।
खुद के बिस्तर से नहीं उठ पाओगी,
जो फिर बारिश होगी।
मैं तुम्हें याद आऊंगा, तुम मुझे याद आओगी।

Tuesday, August 28, 2012

तुम्हारे होंठ बुदबुदाते हैं मेरे जिस्म पर,
कहती हो कहानियां में गढ़ता हूँ.
जुबा से जुबा, ऐसे बात करते हैं हम.
एक हारे सांप को पाल लिया हैं तुमने,
अपने नंगे जिस्म पर.
हाथों को विश्वास नहीं होता तुम्हें छुने का,
कलंक को हीरा कैसे बना सकती हो तुम.
अपनी गहराईओं में मुझे, कहा ले जा सकती हो तुम.
आवारा लोगो को तिजोरी की चाबी नहीं दी जाती,
तुम्हे कोई भी ठग सकता हैं, इतनी हँसी हो तुम,
में तुम्हे गढ़ सकता हूँ.
तिजोरी में बंद करलो मुझे.खुद को देखो शीशे में,

सांप का मुंह तुम्हारे मुंह के अन्दर दिखेगा.
ये जिन्दा सांप, तुम्हरे अन्दर जियेगा अब.
खूब चूमेगा.

Tuesday, July 3, 2012

FiftHead

Fifthead is a head.
Not a head of me,
but me.
My regret of creation.
Creating arrogance.
Hold the blue iron,
beat me.
I gonna fuck the head,
Anyway.

My Red Life.
Cherish the dream of dead,
exist and exit the mind.
Mind the mind.
Bring sulphur to tounge and taste,
Relive the dead in you.

House the white elephant.
Pigeon who can't fly,
forgotton the wing's existence.
House of you,
is a society.
House of me,
is an Insane Zoo.

I live inside my head.
And i say.
"Fuck You".

Full Moon

I smelled the blood today.
I imagined the smell.
We slit our bodies
and dance on blood.
Bare foot, bare body.
Imgaine you breast in blood
And my blue neck of sperm.
I find rubber on my face.
Your hand clutching mine.
Dream of hallucination.
And moan.

Full moon and forest of Nudes.

Toska

Desires
I want to smuggle them to moon
And fuck the happiness of the universe.

Toska,
If you kiss me.
will i really be me
Or lover in your dream.
can i breathe in your dream
and have option to run,
from the door, always opened
to come back.

Toska, Desires of you.
Have succeeded to make a man,
from a man of just being me.
I shall not allow this.

What if we turn human.
Fuck the bodies and mind.
Imagine dead me,
in your bed.
Will you desire or me.

I want to smuggle us to moon.
your desires will be you.
Toska.

And Me will Be You.

Sunday, June 24, 2012

श्याह काली हैं वो,
 
पर बेहद खूबसूरत.
 
जिस उम्र में हैं,
 
उसमें हर्फ़ नहीं.
 
आँखों के नीचें, रात का ज़िक्र,
लड़की को औरत बना सकते हैं , काले घेरें.
 
हाथ, आँखें, हँसना, बातें,
 
सब लड़कियों जैसी.
पाँव की जाली वाली जूतियाँ भी.
 
हर शब्द सुना हुआ,
 
कुछ नया नहीं.
 
जेहन में हैं.
 
वो, उसकी हँसी, नखरा .....
 
खफा हूँ खुद से.
 

Tuesday, June 5, 2012

वो किताबघर से बहार आया था,
पान थूका और खून बहार.
सोचों अगर वो रोने लगे,
या पूछें खुद से,
की मैं पैदा क्या इस दिन के लिए हुआ था.
उससे याद आया की ज़िन्दगी कितनी हाथ में थी.
आसान.
खून तो आज आया, रोज दोड़ता था अन्दर,
तब तो ख्याल नहीं आया.
काश में सबसे मुंह पर यही खून ठुक दू.
वो जिरह कर रही हैं मुझसे,
रोती हैं.
कहती हैं,मुझे इल्म ही नहीं,
की वो मुझे घंटो घूरती रहती हैं,
बावली.

रो क्यों रही हैं,
चूम क्यों नहीं लेती.
असलियत इस ताल्लुक की ये हैं,
की कोई रहम नहीं करता.
लिखने की पड़ी हैं मुझे,
और ताल्लुक सांस ले रहा हैं,
मेरे हाथ को तकियां बनाये.
एक अघोरी के ,शिव के,
उसका सपना ,जो अब मैं हूँ.
क्या वो सच मैं मेरे लिए,
इस पन्दरहवी मंजिल से कूद सकती हैं.
मेरे बालों को घंटो घुन्ध्ती रही,
उसका जिस्म चिपकता रहा मुझसे,
और वो ऐसे ही सो गयी.
पसीने से तर-बतर,
मेरी छाती से चिपकी हुई.
छोड़ के चला जाऊ?
.
.
.
.
हाँ
मैंने उसे उस दिन के बाद कहा देखा.