Tuesday, October 23, 2012

शांत नहीं हूँ मैं,
शांत नहीं हूँ मैं,
मुर्दा हूँ।

शहर में कब्र हैं मेरी,
जिसे मैं घसीटता हूँ।
कभी बस, मेट्रो,सडको पर,
घसीटता रहता हूँ।
मेरी कब्र रंग बदलती हैं,
नंग हूँ।
कब्र को कब्र कहलाना या लिखना,
मर जाने जैसे लगता हैं।
मुर्दा होना, जिन्दा होने से अलग हैं।
जीना समझोता हैं।
मैं समझोते से डरता हूँ,

मैं मुर्दा हूँ और लिखता हूँ।

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