Tuesday, June 5, 2012

मुझे नहीं पता में क्या लिखूंगा,
 अब.
 हवा, शायरी या प्रेम नहीं,
 खुद लिखूंगा खुद को.
 रात बात करने आती हैं,
 रात रोज काली नहीं,
 रात शीशें में देखती हैं,
 खुद को.
 शीशें के उस पार लिखूंगा,
शायद.
 सब झूठ लिखूंगा, बेशक.
 पर तुझे लिखूंगा.
 में उससे, वो मुझसे डरता हैं,
 चूहा कही का.
 जान को मौत लिखूंगा अब,
 फांसी को पीली टैक्सी,
 और प्यार को तु लिखूंगा.
 शीशें के उस पर हूँ,
मैं,
 कभी तो सच लिखूंगा.

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