Monday, July 27, 2015

मैन्नू मार क्यों नहीं देंदी

आज तू रोए या नाग पले ।
कत्लेआम हो या लट जले ।

 सड़को पर ख़ून बहे और जुनूँ ।

सस्ती दारू पीकर गाली दूंगा कुत्तों को।
चाँद पर रस्सी टांग कर,
इंतज़ार करूँगा ।

ख़ुदा तू चीज़ क्या हैं ।

________________________

मैं बरगद बन जाऊंगा, इस बरस ।
 पानी से कठोर, मृदु से मीठा ।

चुपचाप  किसी को मार दूंगा भीतर,
कमरे से निकल आऊंगा ।

चाबी अंग, मैं मृत ।

मेरे भीतर के जीव,
शराब पीने  आऊंगा ।
जाग जाऊंगा ।

________________________

ऐ मरजान वालेया ,
तेनु रब वेखेगा सुत्त्ता।

मेरे कोल तेरा जिन्दा दंद,
तेरे कोल जिंदा मैं ।

मैन्नू मार क्यों नहीं देंदी । 

No comments: