शेर...
इन लिफाफों में हैं सफ़र कितना, ख़त में इसका ज़िक्र भी नहीं.
Saturday, July 16, 2011
वक़्त
कैसे बीता ये वक़्त,
सरफरोशों से हम तकते रहे,रूह,
महकता रहा वक़्त.
फ़क्त चार पैरों पर दुनिया नापनी थी,
लोगो ने सुना,चेह्कता रहा वक़्त.
कुछ इलज़ाम लगे,लगाये गए,
फिर साथ आये,जहाँ बना,चलता रहा वक़्त.
जमीं पर किसी ने लकीरें खिची शायद,
धुंआ उठा,इंजन गर्म,धडकता रहा वक़्त
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