Tuesday, August 31, 2010

रम की बोत्तल-२(माफिया-४,सोनापानी)

ये इश्क जीने की तरह,लाया तुझे ख्वाब में,
हम सोने जो चले ,के नींद आ ही गयी!!

खूब पीकर भी जो हम,ना मर सके,
हम मरे इस तरह ,के मौत आ ही गयी!!

तुझपे मरके, हम सांस लेते हैं,
इश्क ज़िन्दगी हैं जाने-जा ,सांस आ ही गयी!!

बदल बदल कर काफिला ,हम सफ़र करते रहे,
हर सफ़र में ना जाने क्यों,तु आ ही गयी!!

जियो तो जियो,वरना मत जियो,
जीना भी हैं एक नशा,के नींद आ ही गयी!!!

रम की बोत्तल(माफिया-४,सोनापानी)

कर गुनाह के इस इश्क की वजह कुछ और हैं,
तु नहीं में नहीं,ये इश्क कुछ और हैं!!

मेरे जाने के बाद भी तुझको मिलेंगी मोहब्बतें,
वो मोहब्बतें कुछ और थी,ये मोहब्बतें कुछ और हैं!!

हर ख़ामोशी पे लगता हैं,तु हैं हमनशी,
तुने कहा कुछ और हैं,ये नशा कुछ और हैं!!

तुने क्या समझ लिया में हूँ दीवाना तेरा,
तेरी हँसी कुछ और हैं,तेरी बातें कुछ और हैं!!!

में वसियात कर भी दू,पास आने की जो,
तेरी साँसे कुछ हैं,तेरी बाहें कुछ और हैं!!