लब क्या हैं ,क्यों हैं,
लबो के नाम से ही,हमें शर्म क्यों हैं ॥
ये पुरजोर कोशिशें अवाम दर अवाम रही
मेरी ये नज़म बदनाम,थी,बदनाम हैं॥
बरसो बदनाम रही॥
की इश्क क्यों हैं मुझे तुम से
वो न जाने क्यों पूछती रही
कब तक मुझे ख़ुद मैं
ख़ुद को मुझमें दून्द्ती रही
उसके लबो से औरत की आशिकी बोलती रही॥
लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो ,न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही
हज़ार बार इज़हार किया
हज़ार बार इकरार किया
हर बार शर्माती रही
तहजीब हया की बताती रही
लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही
वो नादाँ थी,
पर शोखी की गजब
वो नम धरती सी महकती रही
मेरी रूह मुस्कुराती रही
वो चूमती रही
इश्क तो बरसो से था
आज वो छाए गई
अपने लबो से मेहरबानियाँ
लुटाये गई॥
वो चूमती रही
कुण्डी आदे कब खड़ी थी वो.
की मैं उससे बोलू
तब नासमझ थी मुझसे
अब मुझे ये जताती रही
लब क्या हैं,क्यों हैं
न पूछो न बताओ
तुम बस चूमती रहो॥
वो चूमती रही
बस
चूमती रही... :-)