शेर...
इन लिफाफों में हैं सफ़र कितना, ख़त में इसका ज़िक्र भी नहीं.
Thursday, March 28, 2013
मैं हूँ कफ़न में तुम्हें ढूंढ़ता ,
दोस्त जश्न में हैं मुझे ढूंढते।
कारोबार हैं जिस्म भी, समाज हैं,
भाषा , बोली, रंग, लज्ज़त , सब हैं।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment