इजहार किससे करूँ,कोई नहीं,
तु हैं,तुझे कुछ पता नहीं.
तुझसे कुछ भी कहूँ,लगता हैं तुझे,
शायरी हैं.
सुबह-शाम,दुनिया के बाद,
ले फिर रात आई हैं.
खोल दे खुद को ,तुझे देख नहीं सकता,
तेरी उँगलियों मैं जमें खून ,की खुशबू आई हैं.
इतने सवाल,कभी खुद से भी नहीं होते,
तुने औरत सी जूस्तजू,बच्चें सी नमी पायी हैं.
कोई भी हैं,कही भी हैं,चाहें तु हों,
मैंने खुदा से सिर्फ,खुदखुशी पायी हैं.
हज़ार हर्फों का मतलब एक,
हर्फों ने बस दुनिया बसाई हैं.
कभी आके,सामने बैठना तुम,
मैं भी देखू,किसने ये ग़ज़ल लिखवाई हैं.
ये ज़िन्दगी हैं मौत का मुकदर"शेर",
ये ज़िन्दगी सबने पायी हैं.
किसी के बस का काम नहीं हैं,
मेरी रूह ,मैंने खुद उलझाई हैं.
No comments:
Post a Comment