ईतेफाक की क्या बात जो तुम सामने हो,
लड़ते रहे हैं बहुत,दूसरो की तरह.
आज कुछ न बोलू,ये भी सही.
तुम भी रहो खामोश,अपनों की तरह.
तमाशें में खेलते रहते हैं परिंदे,
गुबार ज़िन्दगी का,आंसुओं की तरह.
चंद पन्नो में तकदीर हमनें लिख दी,
समझ न पाओगी, किताबो की तरह.
हर हाल में जीना,और मात में पीना,
जिसने सिख लिया..
सवर न जाये, काफिरों की तरह.
शेर ने फिर कहा,तेरे बिना वो मर गया,
मर गया बेहतर....
कही सवर न जाये बेगम,किस्मतों की तरह!!
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