शेर...
इन लिफाफों में हैं सफ़र कितना, ख़त में इसका ज़िक्र भी नहीं.
Sunday, August 15, 2010
किसी भी काम का नहीं हूँ में!!
के कोई मुझसे दर्द दे,
किसी काम का नहीं हूँ में,
तेरी जुल्फों के सिवा,
किसी भी शाम का नहीं हूँ में.
कोई बेशक मदहोश करे,
या ले बज़्म में चूमे.
किसी हसीं,
किसी जाम का नहीं हूँ में...
किसी भी काम का नहीं हूँ में!!!
1 comment:
VIJAY
said...
kya likhye ho zalim ...
August 16, 2010 at 4:49 AM
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kya likhye ho zalim ...
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